Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

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Page 560
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४८ ] पर्यायमें अधिक मुनिमण्डली वगैरह सब कोई आजाते हैं इसलिये सबको धर्मलाभ देने की पर्युषणा विचारके लेख ककी ताकत नहीं होते भी देता है तो बद्धिकी अजीर्णतामें क्या न्यूनता रही है सो विवेकीजन स्वयंविचारसकते हैं ; और सातवें महाशयजीने पर्युषणाविचारकेलेख में अधिक मासकी गिनती निषेध करनेके लिये इतना परिश्रम किया है परन्तु अधिक मास किसको कहते हैं जिसकी भी तो उनको मालूम नहीं है क्योंकि, देखो दुनियाके व्यवहारमें तिथि वृद्धिकी तरह दूसरेको अधिक मास कहते हैं। तथा जैनशास्त्रों में भी दूसरेकोही अधिकमास कहा है ॥ और लौकिक पञ्चाङ्गमें दोनों मासके मध्यमें संक्रान्ति रहितकों अधिकमास कहते है परन्तु दिनोंकी गिनती में दोनों मासके ६० दिनांकों बराबर सब कोई लेते हैं इसलिये अधिक मासके दिनोंकी गिनती निषेध नहीं हो सकती है । __और सातवें महाशयजी अधिक मासके ३० दिनांकों गिनतीमें नहीं लेनेका लिख करके भोले जीवोंको बहकाते हैं परन्तु खास आपही अधिक मासके ३०दिनोंको गिनती में ले करके सर्व व्यवहार करते हैं से तो प्रत्यक्ष दीखता है तथापि अधिक मासके ३० दिनोंको गिनती में नहीं लेनेका लिख करके भोले जीवोंको बहकाते हैं से तो 'ममजननी वन्ध्या की तरह प्रत्यक्ष धूर्तताका नमूना है सो तो विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे। और सातवें महाशयजीने अधिकमासको नपुसक निः सत्व ठहराकर उसीको गिनतीमें छोड़देने का लिखा है परंतु सब दो भाद्रपद होते हैं तब अधिक मास रूप दूसरे भाद्र For Private And Personal

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