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[ ४३३ ] सब कोई आत्मार्थि जन अधिक मासकी गिनती प्रमाण करकेही पर्युषणा करते हैं और आगे भी ऐसे ही करेंगे परन्तु शासननायक श्रीवर्द्धमान स्वामीके मोक्ष पधारे बाद अनुमान एक हजार वर्ष व्यतीत हुए पीछे उत्सूत्र भाषणों में आगेवान गच्छ कदाग्रही शिथिलाचारी धर्मधूर्त जैनामास पाखण्डी चैत्य वासियोंने पञ्चाङ्गी प्रमाणपूर्वक प्रत्यक्षसिद्ध होते ही कितनीही सत्य बातोंको निषेध करके अपनी मति कल्पनासे उत्सूत्र भाषणरूप कुयुक्तियों करके श्रीजिनाज्ञाविरुद्ध कल्पित बातोंकी प्ररूपणा करी और अविसंवादी श्रीजैन शासनमें वि संवादके मिथ्यात्वको बढ़ाया था जिसमें शास्त्रानुसार तथा युक्ति पूर्वक अधिक मासकी गिनती तथा आषाढ़ चौमासीसे ५०दिने श्रीपर्युषणा पर्वका आराधन करनेका प्रत्यक्ष दिखते हुए भी लौकिक पञ्चाङ्गमें मासद्धि दो श्रावणादि होनेसे प्रत्यक्ष शास्त्रोके तथा युक्तिके भी विरुद्ध होकर यावत् ८० दिने श्रीपर्युषणा पर्वका आराधन करनेका सरू करके श्रीजिनाज्ञाका उत्थापनसे मिथ्यात्व फैला या और निर्दूषण बननेके लिये अधिक मासकी गिनती निषेध करके उत्सत्र भाषणोंकी कुयक्तियोंसे अज्ञानीजीवोंको अपने मिथ्यात्वको भ्रमजालमें फसाने के लिये धर्मधूर्ताई करने में कुछ कम नहीं किया था सो तो श्रीसंघपटककोव्याख्याओंके अवलोकनकरनेसे अच्छी तरहसे मालूम हो सकताहै । ___ और कितनेही भारी कर्मे प्राणी तो उपरोक्त मिथ्यात्वकी भ्रमजाल में फसकर अन्धपरम्परासे उसीकाही पुष्ट करते हुए बाल जीवोंको अपने फंदमें फसाते रहते थे उसी मिथ्यात्यकी अन्धपरम्पराकेही अनुसार पं० श्रीहर्षभूषणजी
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