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[ ४१७ ] आश्विन होनेसे श्राद्धपक्ष प्रथम आश्विनमें और दशहरा दूसरे आश्विनमें, इसी तरह से सब अधिक मासांके कारणसे मास नैमित्तिक कार्य आगे पीछे दोनों में मानते हैं। परन्तु सातवें महाशय जी नैमित्तिक कार्य केवल दूसरे मासमें ही करनेका लिख करके दो कार्तिक होवे तब दिवाली वगैरह कृष्ण पक्षके नैमित्तिक कार्य दूसरे कार्तिक तथा दो पौष होवें तब श्रीचन्द्रप्रभुजीके,श्रीपार्श्वनाथजीके जन्म, दीक्षादि कल्याणक दूसरेपौषमें और दो चैत्रहोनेसे श्रीपार्श्वनाथजीके केवल ज्ञान कल्याणकको दूसरे चैत्र में इसी तरहसे कृष्णपक्षके नैमित्तिक कार्य भी दूसरे मासमें ठहराते हैं सो शास्त्रविरुद्ध होनेसे अज्ञताका कारण है क्योंकि ऊपरोक लेखानुसार ऊपर के कार्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्षमें होने चाहिये सैो तो न्याय दृष्टि वाले विवेकी पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे;___और उपरोक्त नैमित्तिक कार्योंके लेखसे दो भाद्रपद होनेसे पर्युषणा भी दूसरे भाद्रपदके दूसरे शुक्ल पक्ष में सातवें महाशयजी ठहराते हैं से भी निषकेवल अपनी अज्ञानता को प्रगट करते हैं क्योंकि मास नैमित्तिक कार्य अधिक मास होनेसे आगे पीछे दोनों मास में करने में आते हैं परन्तु पर्युषणा वैसे नहीं हो सकती है क्योंकि पर्युषणा तो दिनोंके प्रतिबद्ध होनेसे अषाढ़ चौमासीसे ५० दिनकी गिनतीसे अवश्य करके करनेका अनेक शास्त्रों में प्रगट पाठ है इसलिये दो भाद्रपद होनेसै पर्युषणा दूसरे भाद्रपद में नहीं किन्तु प्रथम भाद्रपदमें ५० दिनकी गिनतीसे शास्त्रको प्रमाण करने वाले आत्मार्थियों को करनी चाहिये और प्राचीन कालमें जैन पञ्चांगानुसार मास वृद्धि होनेसे श्रावणमें पर्यु।
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