Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

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Page 554
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४२२ ] भी मेरेको इतनाही कहना है कि-यह भी सातवें महाशयजीका लिखना अज्ञताका मूचक है क्योंकि श्रीजिनेश्वर भगवान्का कथन करा हुआ श्रीजिन प्रवचन अविसंवादी होनेसे सब गणधरोंके मबगच्छोंकी एकही समाचारी होती है परन्तु इस वर्तमान काल में तो सब गच्छ वालोंकी भिन्न भिन्न समाचारी है और शास्त्रों के प्रमाण विनाही अन्ध परम्परासे कितनी ही बाते चल रही है इसलिये शास्त्र प्रमाण बिनाकी द्रव्य परम्परा पालने वालोंको तो श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध महान् विरोध प्रत्यक्ष दिखता है तथापि अपने अन्ध परम्परा के कदाग्रहको नही छोड़ते हैं फिर कुयुक्तियोंसे अपना कदाग्रहके मंतव्यको पुष्ट करके विरोध रहित ( सातवें महाशयजीकी तरह) बनना चाहते है सो तो बुद्धिमान पुरुष नहीं किन्तु अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी पक्के कदाग्रही कहे जाते हैं इसलिये अपने आत्म साधनमें विरोध नही चाहनेवाले तत्वज्ञ पुरुषों को तो शास्त्र विरुद्ध अपनी परम्पराको छोड़ करके शास्त्रानुसार सत्य बातको ग्रहण करनाही परम उचित है;__ और पर्युषणा विचार के दशवें पृष्ठकी सातवीं पंक्तिसे दशवीं पंक्ति तक लिखा है कि (हित बुद्धिसे लिखे हुए विषय पर समालोचना करना हो तो भले करो किन्तु शास्त्र मार्गसे विपरीत न चलने के लिये सावधानी रखना समा. लोचनाकी समालोचना शास्त्र मर्यादा पूर्वक करने को लेखक तैयार है ) सातवें महाशयजीके इस लेखपर भी मेरेको इतना ही कहना है कि-जैसे कितनेही ढूंढ़िये तेरहा पंथी वगैरह कदापही मायावृत्तिवाले धूर्त लोग अपने कदाग्रहके पक्षको For Private And Personal

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