________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ४१८ ] षणा करनेमे आतीथी तथा वर्तमानकालमें दो श्रावण होनेसे दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करने में आती है इसलिये मासद्धि होतेभी भाद्रपद प्रतिबद्ध पर्यषणा नही ठहर सकती है किन्तु दिनोंके प्रतिबद्धही गिनने से जहां व्यवहार से ५० दिन पूरे होवे वहांही करनी उचित है इतने परभी सातवें महाशयजी अपने कदाग्रह के हठवादसे शास्त्रों के प्रमा. णोंको छोड़ करके नैमित्तिक कार्यो की तरह दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा करनेका ठहराते हैं तोभी उन्होंको प्रत्यक्ष विरोध आता है सोही दिखावते हैं कि-खास सातवें महाशयजीके पूर्वजने अधिक मास होनेसे कृष्ण पक्ष के नैमित्तिक कार्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्ष में करनेका कहा है उसी मुजब सातवें महाशयजी पर्युषणाकरें तब तो पर्यषणाके आठदिनोके उच्छव का अङ्ग हो जावेगा और पर्युषणामे पहिले कृष्ण पक्षके चार दिनोके कार्य प्रथम भाद्रपदमें करने पड़ेगे फिर एक मास पर्यन्त मौन धारण करके पर्युषणामें पिछाड़ीके चार दिनोंके कार्य दूसरे भाद्रपदमे करें तब तो सातवें महाशयजीकी खूब विटंबना होजावे से तत्वज्ञ विवेकी जन स्वयं विचार लेवेगे;___और ओलियों छठे महीने करने में आती है परन्तु अधिक मास होनेसे सातवें महीने करने में आती है तथा चौमासी चौथे महीने करने में आता है परन्तु अधिक मास होनेसे पांचवें महीने करनेमें ओता है सो तो न्यायपूर्वक युक्ति की बात है परन्तु पर्यषणा तो आषाढ चौमासीसे ५० दिने अपश्य करके करनेका कहा है, इसलिये अधिक मास हो तो भी ५० वें दिनकी रात्रिको भी उल्लंघन करनेसे मिघ्या.
For Private And Personal