________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ १४२ ] भाद्रपद होनेसे प्रथम भाद्रपदमें ही पर्युषणा करनी जिनाज्ञामुजब शास्त्रानुसार है नतु दूसरे में, इतनेपर भी हठवादीजन शास्त्रोंके विरुद्ध होकरके भी दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा करेंगे तो उन्होंके इच्छाकी बात ही न्यारी है;___ और तीनों महाशय दो चतुर्दशी होनेसे प्रथम चतुर्दशी को छोड़कर दूसरी चतुर्दशीमें पाक्षिक कृत्य करनेका कहते है सोभी शास्त्रविरुद्ध है इसका विशेष खुलासा तिथिनिर्णयका अधिकारमें आये विस्तार पूर्वक शास्त्रोंके प्रमाण सहित करने में आवेगा ,- और अधिक मासमें देवपूजा, मुनिदान, पापकृत्योंकी
आलोचनारूप प्रतिक्रमणादि कार्य दिन दिन प्रति करनेका कहकर अधिक मासके तीस ३० दिनोंमें धर्मकर्मके कार्य करनेका तीनों महाशय कहते है परन्तु अधिक मासको गिनती में लेनेका निषेध करते हैं, इसपर मेरेकों तो क्या परन्तु हरेक बुद्धिजन पुरुषोंकों तीनों महाशयोंकी अपूर्व बालबुद्धिकी चातुराईको देखकर बड़ाही आश्चर्य को उत्पन्न हुये बिना नहीं रहेगा क्योंकि जैसे कोई पुरुष एक रुपैये को अप्रमाण मानता है परन्तु १६ आने, तथा ३२ आधाने और ६४ पाव आने, आदिको मान्य करता हैं और एक रुपैये को मानने वालोंका निषेध करता है, तैसेही इन तीनों महाशयोंका लेखझी हुवा अर्थात् अधिक मासके ३० दिनों में धर्मकर्म तो मान्य किये, परन्तु अधिक मासको मान्य नहीं किया और मान्य करनेवालोंका निषेध किया सो क्या अपूर्व विद्वत्ता प्रगट तीनों महाशयोंने किवी है, जैसे उस पुरुषने जब १६ आने तथा ३२ आध आने चौसठ पाव आने को
For Private And Personal