________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३१८ ] नयकी अपेक्षा के लिये आगे लिखंगा
अब सत्यग्राही तत्त्वज्ञ पुरुषोंको न्यायदृष्टि से विचार करना चाहिये कि अधिक मासके कारण, चौमामीमें पांच मासादिसें और सांवत्सरिमें १३ मासादिसे क्षामणे करने का अनेक शास्त्रोंके प्रमाणानुसार युक्तिपूर्वक और प्रत्यक्ष अनुभवसे स्वयं सिद्ध है सो तो मैंने ऊपरमें ही लिख दिखाया है परन्तु सातवें महाशयजी कोई भी शास्त्रके प्रमाण बिना पांच मास होते भी चार मासके क्षामण करने का और तेरह मास होते भी १२ मासके क्षामणे करनेका लिख दिखाके फिर शास्त्रानुसार पांच मासके और तेरह मासके क्षामणे करने वालोंको दूषण लगाते हैं सो अपने विद्वत्ताकी हांती करा करके, संसार वृद्धिके हेतुभूत उत्सूत्र भावणके सिवाय और क्या होगा सो पाठकवर्गको विचार करना चाहिये।
और भी आगे पर्युषणा विचारके चौथे पृष्ठकी १५ वीं पंलिसें २१वीं पंक्ति तक लिखा है कि-( दूसरी बात यह है किसी समय सोलह (१६) दिनका पक्ष होता है और कभी चौदह दिनका पक्ष होता है उस समय 'एक पख्खाणं पन्नरसण्हं दिवसाणं' इस पाठको छोड़कर क्या दूसरी पाठकी कल्पना करते हो यदि नहीं करते तो एक दिनका प्रायश्चित्त बाकी रह जायगा जैसे तुम्हारे मतमें 'चउण्हं मासाणं' इत्यादि पाट कहने से अधिकमासका प्रायश्चित्त रह जाता है)
ऊपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि हे सज्जन पुरुषों सातवें महाशयजीके ऊपरका लेखको देखकर मेरेको बड़ाही विचार उत्पन्न होता है कि-सातवें
For Private And Personal