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[ ३ ] महाशयजी उसीकी गिनतीका निषेध करते हैं सो तो प्रत्यक्ष अन्याय कारक वृथा है इस बातको पाठकवर्ग भी स्वयं विचार सकते हैं और तीनो महाशयोंने भी ऊपरकी बात संबन्धी बाल लीलाको तरह लेख लिखा था जिसकी भी ममीक्षा इसीही ग्रन्थके पृष्ठ १४२।१४३ में छप गई है सो पढ़ने में विशेष निःसन्देह हो जावेगा;___ और ( जैसे नपंसक मनुष्य स्त्री के प्रति निष्फल है किन्तु लेना लेजाना आदि गृहकार्यके प्रति निष्फल नहीं है उसी तरह अधिक मासके प्रति जानों ) इन अक्षरों करके सातवें महाशयजीने देवपूजा मुनिदान आवश्यकादि ३० दिनों में धर्मकार्य होते भी पर्युषणादि धर्मकार्यों में ३० दिनोंका एक मामको गिनतीमें निषेध करने के लिये अधिक मासको नपंसक ठहरा करके बालजीवोंको अपनी विद्वत्ताकी चातुराई दिखाई है से तो निःकेवल उत्सूत्रभाषण करके गाढ़ मिथ्यात्वसे संसार वृद्धिका हेतु किया है क्योंकि श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराजोंने जैसे मन्दिरजीके ऊपर शिखर विशेष शोभाकारी होता है उसी तरह कालका प्रमाणके ऊपर शिखररूप विशेष शोभाकारी कालचूलाकी उत्तम ओपमा अधिक मासको दिई है और अधिकमास को गिनतीमें सामिल ले करकेही तेरह मासका अभिवर्द्धित संवत्सर कहा है जिनका विस्तारसें खुलासा इसीही ग्रन्थके पृष्ठ १८ से ६५ तक छयगया है तथापि सातवें महाशयजीने श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आजा उल्लङ्घनरूप तथा आशातना कारक और पञ्चाङ्गीके प्रत्यक्ष प्रमाणोंको छोड़ करके अधिक मामको नपंसककी हलकी
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