Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

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Page 529
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Achar [ ३८७ ] आता है और उसकी निवृत्ति भी होती है इसलिये अधिक माममें क्षुधा लगती है और उसीकी निवृत्ति भी होती है। और पाप बन्धनमें भी लन, वचन, कायाके योग कारण है उसीसे पाप बन्धन रूप कार्य होता है और मन, बचन, कायाके, योग ममय समयमें शुभ वा अशुभ होते रहते हैं जिससे समय समय पण्य का अथवा पाप का बन्धन भी होता है और समय समय करकेही आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, संबल्सर, युगादिसें यावत् अनन्त काल व्यतीत होगये हैं तथा आगे भी होवेंगे इसलिये अधिक मासमें पुण्य पापादि कार्य भी होते हैं और उसीकी निवृत्ति भी होती है और समयादि कालका व्यतीत होना अढाई द्वीपमें तथा अढाई द्वीपके बाहरमें और ऊर्द्ध लोकमें, अधोलोकमें सर्व जगह में है इसलिये यहांके अधिक मासका कालमें वहां भी समयादिसे काल व्यतीत होता है इसीही कारणसे यहाँके अधिक मासका काल में यहांके रहने वाले जीवोंकी तरहही वहांके रहनेवाले जीवोंको वहां भी क्षधा लगती है और पुण्य पापादिका बन्धन होता है और यद्यपि वहां पक्षमासादिके वर्तावका व्यवहार नहीं है परन्तु यहांझी और वहां भी अधिक मासके प्रमाणका समय व्यतीत होना सर्वत्र जगह एक समान है इसीही लिये चारोंही गतिके जीवोंका आयुष्यादि काल प्रमाण यहांके संवत्सर युगादिके प्रमाणसें गिना जाता है जिससे अधिकमासके गिनतीका प्रमाण-संवत्सर, युग, पूर्वाङ्ग, पूर्व, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, वगैरह सबी कालमें साथ गिना जाता है तथापि सातवें महाशयजी अधिकमासके For Private And Personal

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