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[ ४१२ ] तथा दीपिका इत्ति में और सुखबोधिका वृत्तिमें अपने ही गच्छके विद्वानोंने खुलासा पूर्वक लिखे हैं सो सातवें महाशयजी अच्छी तरहसे जानते हैं और दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें ५० दिन पूरे होते हैं इसलिये “जब दो प्रावण आवे तो श्रावण सुदी चौथके रोज सांवत्सरिक कृत्य करे ऐसा तो पाठ कोई सिद्धान्तमें नहीं है तो आग्रह करना क्या ठीक है" सातवें महाशय जीका यह लिखना मायावृत्तिसे अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको प्रगट करनेवाला प्रत्यक्ष सिद्ध होगया सो पाठकवर्ग भी विचार लेवेंगे,___और ( दो भाद्र आवे तो किसी तरह पूर्वोक्त पाठका समर्थन करोगे परचसत्तर दिनमें चौमासी प्रतिक्रमण करना पाहिये ) सातवें महाशयजीके इस लेखपर भी मेरेको इतनाही कहना है कि-दो भाद्रआवे तब पूर्वोक्त पाठके अभि. प्रायसै ५० दिनकी गिनती करके प्रथम भाद्रपदमे पर्युषणा करना सो तो न्यायकी बात है परन्तु दो भाद्र होते भी पिछाडीके 90 दिन रखने के लिये दूसरे भादमें पर्युषणा करनेवालोंकी बड़ी भूल है क्योंकि पूर्वोक्त पाठमें कारण योगे ge वें दिन पर्युषणा करी है परन्तु ५१ वें दिन भी नहीं करी है इस लिये दो भाद्र होनेसे दूसरे भाद्रमें पर्युषणा करने वालोंको ८० दिन होते हैं इसलिये श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध बनता है और चार मासके १२० दिनका वर्षाकालमें ५० दिने पर्यु: षणा करनेसे पिछाड़ी 90 दिन रहनेका दोनु चूर्णिके पाठमें खुलासा पूर्वक कहा है सो तो इसीही अन्य के पृष्ट १४ और ल में पाठ छप गये हैं इसलिये मास वृद्धि होते भी पिछा. डीके, 90 दिन, रखनेका आग्रह करने वाले अन्नानियोंकी
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