Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

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Page 541
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ܬ [ ४०० ] किसी तरह पूर्वोक्त पाठका समर्थन करोगे । परसत्तर दिनमें चौमासी प्रतिक्रमण करना चाहिये ) ऊपरके लेखको ममीक्षा करके पाठक वर्गको दिखाताहूं कि - हे सज्जन पुरुषो मातवें महाशयजोका ऊपर के लेखको मैं देखता हूं तो मेरे को बड़े ही खेदकेमाथ आश्चर्य उत्पन्न होता है कि, सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजीने शास्त्रविशारदजैनाचार्यकी पदवी को धारणकरी है परंतु अपनेकदाग्रह के कल्पित पक्षकीबातको मायावृत्तिसे स्थापित करके बालजीवों को श्रीजिनाज्ञाभ्रष्टकरनेके लिये उन्होंनें अभिनेवेशिक मिथ्यात्वका बहुत ही संग्रह होने से उसपदवीको सार्थक न कर सके परन्तु शास्त्रविराधक उत्स भाषणाचार्यकी पदवीके गुण तो ( सातवें महाशयजी में) प्रगट दिखते है क्योंकि देखो सातवें महाभयजीने मास वृद्धि दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापन करने के लिये पर्युषणाकल्पचूर्णिका और महानिशीथ के दशवे उद्देशकी चूर्णिका पाठ लिख दिखाया परंतु शास्त्रकार महाराजोके विरुद्धार्थमें अधूरी बात भोले जीवोंको दिखाने से संसारवृद्धिका कुछभी भय हृदयमें लाये मालूम होता है। क्योंकि प्रथमतो महानिशीथकी चूर्णिका नाम लिखा सोतो उपयोग शून्यता के कारण से मिथ्या है क्योंकि महानिशीथ की चूर्णि नहीं किंतु निशीथसूत्रकी चूर्णि है और पर्युषणा कल्प चूर्णिमें तथा निशीथ सूत्रकी चूर्णि में खास पर्युषणा केही संबंधकी व्याख्या में अधिक मासको गिनती में प्रमाण किया है और मास वृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सर में बीस दिने पर्युषणाकही है तैसेहीं मास वृद्धिके अभाव से चंद्र संवत्सर में ५० दिने पर्युषणा कही है और पञ्चक परिहाणीका कालमें ५२ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal

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