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[ ४०८ ]
कर सत्य बातको ग्रहण करना चाहिये जिसमें आत्मकल्याण है नतु अधिक मासके गिनतीका निषेध रूप अंध परंपराका मिथ्यात्व में; -
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और इसके आगे फिरभी मासवृद्धि होतेभी भाद्र पदमें पर्युषण ठहराने के लिये पर्युषणा विचारके सातवें पृष्ठके अन्त ते आठवें पृष्ठ तक लिखा है कि- (पर्युषणाकल्पचूर्णि, तथा महानिशीवचूर्णिके दसवें उद्देशेमें इसी तरहका पाठ है,
“ अन्नया पज्जोसवणादिवसे आगए अज्जका लगेण सालवाहणो भणिओ, भट्टद्वयजुरहपञ्चमीए पज्जो सबणा" इ०
तथा “ तत्थ य सालवाहणो राया, सेा असावगा, सेा भ कालगञ्ज इंतं सैाऊण निग्गओ, अभिमुहा समणसंघो अ, महाविभूईए पविट्ठो कालगज्जी, पषिद्ध हिंअभणिअं भवयमुद्ध पञ्चमीपज्जो सचिज्जई समणसंथेण पडिवरणं ता ररणामणिअं तद्दिवसं मम लोगानुवत्तीए इंदो अणुजाणेयव्बो होहित्ति साहू चेइए अणुपज्जुवासिस, तो बट्ठीए पज्जेोसवणा किज्जइ, आयरिएहिं भणिअं न वट्ठिति अतिक्कमितुं, ताहे ररणा भणिअं ता अणागए उत्थीए पज्जोसविति, आयरिएहि भणिअं, एवं भवड, ताहे चउत्थीए पज़्जोस'वियं, एवं जुगप्पहाणेहिं कारणे चउत्पी पवत्तिआ, सा चेषाणुमता सव्वसाहू जमित्यादि" ।
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ऊपर की पाठ साक्षात् सूचित करती है कि भाद्र खुदी चौथको साम्बत्सरिक प्रतिक्रमण वगैरह करना चाहिये । किन्तु जब दो श्रावण आवें तो श्रावण सुदी चौथ के रोज साम्वत्सरिक कृत्य करे ऐसा तो पाठ कोई सिद्धान्तमें नहीं है तो आग्रह करना क्या ठोक है ? दो भाद्र आवेंतो
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