________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[
४००
]
ओपमा लिखके अधिक मासको हिलना करी और संसार वृद्धिका कुछ भी भय न किया सो वढेही अफसोसकी बात है:
और वैष्णवादि लोग भी अधिकमासको दानपुण्यादि धर्मकायों में तो बारह मासेांसे भी विशेष उत्तम “पुरुषोतम अधिक मास" कहते हैं और उसीकी कथा सुनते हैं और दानपुण्यादि करते हैं और पञ्चाङ्गमें भी तेरह मास, छवीश पक्षका वर्ष लिखते हैं से तो दुनिया में प्रसिद्ध है तथापि सातवें महाशयजी अधिक मासको नपुंसक कहके उसको गिनतीमें निषेध करते हुबे, तेरहमा अधिक मासको सर्वथाही उड़ा देते हैं और दुनियाके भी विरुद्धका कुछ भी भय नहीं करते हैं से भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका नमूना है क्योंकि सातवें महाशयजो काशी बहुत वर्षों से ठहरे हैं और अधिक मास होनेते परुषोत्तन अधिक मासके महात्म की कथा काशीमें और सब शहरोंने अनेक जगह वंचाती है सौता प्रसिद्ध है और जैनशास्त्रानुसार तथा लौकिक शास्त्रानुसार धर्मकार्यों में अधिक भाम श्रेष्ठ है, तथापि सातवें महाशयजी नपुंसक ठहराते हैं सेले ऐसा होता है कि--
किसी नगरमें एक शेठ रहता था, मो रूपलावण्य करके युक्त और धर्मावलम्बी था इसलिये उसीने परस्त्री गमनका और वेश्याके गमनका वर्जन किया था, सा शेठ किसी अवसरमें बजारके रस्तेसे चला जाता था उसी रस्तेमें कोई व्यभिचारिणी स्त्रीका और वेश्याका मकान आया, तब वह अठ उसीका मकानके पास हो करके आगेको चला गया परन्तु उसीके मकानपर न गया तब उस शेठको देखकर वह
For Private And Personal