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चार आंख वालेकी तरह हो जाना चाहिये तैसेही यह शेठ पुरुष है परन्तु पर स्त्रीके गमनका और वेश्याके गनमका वर्जन करनेवाला धर्मावलम्बी होनेसे उनके साथ मैथुन सेवन करनेमें तो नपुंसककी तरह हैं परन्तु अपने नियमका प्रतिपालन करके ब्रह्मचर्य्य धारण करनेमें ता समर्थ होनेसे उत्तम पुरुषकी तरह है अर्थात् आपही उस गुणसे उत्तम पुरुष हैं इसी न्यायानुसार यद्यपि अधिक मास भी गिनती प्रमाणका व्यवहार में तो बारह मासों के बरोबरही पुरुष रूप है उसीमें वैष्णव लोग दान पुण्यादि विशेष करते हैं और उसीके महात्म्यकी कथा सुनते हैं इसीलिये उसीको पुरुषोत्तम अधिक मास कहते हैं ।
और श्रीजैन शास्त्रों में भी मन्दिर के शिखरवत् कालका प्रमाणके शिखर रूप उत्तम ओपमा अधिक मासको है । उसीमें मुहूर्त नैमित्तिक विवाहादि आरम्भ वाले संसा रिक कार्य्य नहीं होते हैं परन्तु धर्म कार्य्य तो विशेष होते हैं इसलिये उपरोक्त न्यायानुसार मुहूर्त्त नैमित्तिक आरम्भ वाले संसारिक कार्योंमें तो अधिक मास नपुंसककी तरह है परन्तु धर्म कार्योंमें तो विशेष उत्तम होनेसे सबसे अधिक है इसलिये इसका अधिक नास ऐसा नाम भी सार्थक है तथापि धर्म कार्यों और गिनतीका प्रमाण में उसीको नपुंसक ठहरा करके अधिक मासको जिन्दा करते हुए उसीकी गिनती निषेध करते हैं तो वह व्यभिचारिणो स्रोका और वेश्याका अनुकरण करनेवाले हैं सो पाठकवर्ग विश्वार लेबेंगे और अब सातवें महाशयजीके आगेका लेखकी समीक्षा करके पाठ वर्षको दिखाता हूं पर्युषणा विश्वारके उट्ठे पृष्टकी १९ वीं पंक्ति में सातवें पृष्टकी
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