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श्रावणादि मासों की वृद्धि होनेसें उन अधिक मासोंके समयमें देशदेशान्तरे आम्र वृक्षादिका फूलना, फलना और आमोंका उत्पत्ति होना प्रत्यक्ष देखने में और सुननेमें आता है और किसी देशमें माघ, फाल्गुन मासमें तो क्या परंतु हरेक मासोंमें भी आम्र फूलते हैं और अधिक मासके बिना भी हरेक मासोंमें कणियर भी फूलता रहता है इसलिये शास्त्रकार महाराजका अभिप्रायके विरुद्ध और कारण कार्य्य तथा आगे पीछेको सम्बन्धको प्रस्ताविक बातको छोड़ करके अधूरा सम्बन्ध लेकर शब्दार्थ ग्रहण करनेसे तो बड़ेही अनर्थका कारण होजाता है, जैसे कि - श्रीसूयगड़ाङ्गजीमें वादियोंके मत सम्बन्धकी बातको, श्रीरायप्रशेनी में परदेशी राजाके सम्बन्धकी बातको श्रीआवश्यकजीकी और श्रीउत्तराध्ययनजीको व्याख्यायोंमें नियोंके सम्बन्धकी बातको, और श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यायों में श्रीआदिजिनेश्वर भगवान् के वार्षिक पारणेके अवसर में दोनुं हाथोका विवाद के सम्बन्धकी बातको इत्यादि पञ्चाङ्गी के अनेक शास्त्रों में सैकड़ो जगह शब्दार्थ और होता है परन्तु शास्त्र कार महाराजका अभिप्राय औरही होता है इसलिये उस जगहकी व्याख्या लिखते पूर्वापरका सम्बन्ध रहित और शास्त्रकार महाराजके अभिप्राय विरुद्ध निःकेवल शब्दार्थको पकड़ करके अन्य प्रसङ्गको अन्य प्रसङ्गमें अधूरी बातको लिखने वाला अनन्त संसारी मिथ्या दृष्टि निहूव कहा जावे, तैसेही श्रीआवश्यक नियुक्तिकार महाराजके अभिप्रायके विरुद्धार्थमै शब्दार्थको पकड़ करके बिना सम्बन्धको और अधूरी बात लिखके जो सातवें महाशयजीने बालजीवों
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