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[ ३८८ ] शयजी ठहरा सकेंगे से तो कदापि नहीं तो फिर वृथा क्यों कदाग्रही बालजीवोंको मिथ्यात्वकी श्रद्धामें गेरनेके लिये अधिक मासमें वनस्पतिको नहीं फलनेका उत्सूत्र भाषणरूप प्रत्यक्ष मिथ्या स्थापन करते हैं सो न्यायदृष्टि वाले विवेकी पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे ॥ ___और अधिक मासको वनस्पति अङ्गाकार नही करती है इत्यादि लेख चौथे महाशयजी न्यायाम्भोनिधिजीने भी बालजीवों को मिथ्यात्वमें गेरनेके लिये उत्सूत्र भाषणरूप लिखा था जिसकी भी समीक्षा इसीही ग्रन्यके पृष्ठ २०५ सें २१० तक छप गई है सौ पढ़नेसै विशेष निर्णय हो जावेगा। ____ और 'दो चैत्र मास होंगे तो प्रथम चैत्रमें आम्रादि नहीं फलते दूसरे चैत्रमें फलेगें इस विषय सम्बन्धी आवश्यक नियुक्तिके प्रतिक्रमण अध्ययनकी एक गाथा' सातवें महाशयजीने लिख दिखाई-तो तो निःकेवल अपने विद्वत्ता की अजीर्णता प्रगट करी है क्योंकि श्रीआवश्यक नियुक्ति के रचने वाले चौदह पूर्वधरश्रुतकेवली श्रीमान् भद्रबाहु स्वामीजी जैनमें प्रसिद्ध हैं उन्ही महाराजको अनुमान २२७०वर्ष व्यतीत होगये हैं उन्होंके समयमें अठाशी ग्रहोंके गतिकी मर्यादा पूर्वक जैनपञ्चाङ्ग सुरूथा उसीमें पौष और आषाढ़ मासके सिवाय चैत्रादि मासोंकी वृद्धिकाही अभाव था तो फिर श्रीआवश्यक नियुक्तिके गाथाका तात्पर्यार्थको गुरु गमसें समझे बिना दूसरे चैत्रमें आम्रादि फलनेका सातवें महाशयनी ठहराते हैं सो विवेकी बुद्धिमान् कैसे मान्य करेगें अपितु कदापि नहीं।
और श्रीआवश्यक नियुक्तिकी गाथा लिखके अधिक
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