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[ ३० ] अब इस जगह विवेकी पाठकवर्गको विचार करना चाहिये कि-खास नियुक्तिकार महाराज अधिकमासको प्रमाण करने वाले थे तथा खास श्री आवश्यक नियुक्ति में ही अधिक मासको प्रमाण किया है सो तो प्रगट पाठ है तथापि सातवें महाशयजीने गच्छपक्षके कदाग्रहसें दृष्टिरागियों को मिथ्यात्वके झगड़े में गेरने के लिये नियुक्तिकार चौदह पूर्वधर महाराजके विरुद्धार्थ में उत्सूत्र भाषणरूप अपनी मति कल्पनासे, नियुक्तिकी गाथा लिखके उसीके तात्पर्य्यको समझे बिनाही अधिक मासको गिनतीमें निषेध करनेका वृथा परिश्रम किया सो कितने संसारकी वृद्धि करी होगी सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने और तत्त्वज्ञ पुरुष भी अपनी बुद्धिसे स्वयं विचार लेवेंगे। __अब इस जगह पाठकवर्गको निःसन्देह होने के लिये नियुक्तिकी गाथाका तात्पर्य्यार्थको दिखाता हूं।
श्रीनियुक्तिकार महाराजने श्रीआवश्यक नियुक्ति में छ (६) आवश्यकका वर्णन करते प्रतिक्रमण नामा चौथा आवश्यक में “पडिक्कमणं १ पडिअरणा २, पडिहरणा ३ वारणा ४ णियतिय ५॥ जिंदा ६ गरहा १ सोही८, पडिक्कमणं अहहा होइ" ॥ ३॥ इस गाथासे आठ प्रकारके नाम प्रतिक्रमणके कहे फिर अनुक्रमे आठोंही नामोके निक्षेपोंका वर्णन किया हैं और भव्यजीवोंके उपगारके लिये अद्धाणे १ पासए २ दुद्धकाय ३ विसोयणा तलाए ४॥ दोकमा ५ चितपुत्ति ६ पइमारियाय ७ वत्थेव ८ अढणय" ॥ १२ ॥ इस गाथासै प्रतिक्रमण सम्बन्धी आठ दृष्टांत दिखाये जिसमें पांचवा गियत्ति अर्थात् निवृत्ति सो उन्मार्गसे हट करके
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