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[ ३८६ ] वाला होगा वह दूसरेही श्रावणमें उत्पन्न हागा न कि पहिलेमें। जैसे दो चैत्र मास होगे तो दूसरे चैत्रमें आम्रादि फलेंगे किन्तु प्रथम चैत्र में नहीं। इस विषयकी एक गाथा आवश्यकनियुक्तिके प्रतिक्रमणाध्ययनमें यह है"जइ फुल्ला कणिआरया चूअग अहिमासयंमि घुट्ठमि । तुह न खमं फुल्ले जइ पच्चंता करिति डमराई" ॥ १॥
अर्थात् अधिकमासकी उद्घोषणा होनेपर यदि कर्णिकारक फूलता है तो फूले, परन्तु हे आम्रवक्ष ! तुमको फूलना उचित नहीं है, यदि प्रत्यन्तक ( नीच ) अशोभन कार्य करते हैं तो क्या तुम्हें भी करना चाहिये ?, सज्जनोंको ऐसा उचित नहीं है।
इस बात का अनुभव पाठकवर्ग करें यदिः अभ्यासकी सफलता हो तो जैसे कुशाग्रबुद्धि आज्ञानिबद्ध हृदय आचायोंने अधिक मासको गिनती में नहीं लिया है उसी तरह तुम्हें भी लेखामें नहीं लेना चाहिये। जिससे पूर्वोक्त अनेक दोषोंसे मुक्त होकर आज्ञाके आराधक बनोगे।]
ऊपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि- हे सज्जन पुरुषो सातवें महाशयजीने गच्छ पक्षी बालजीवोंको मिथ्यात्वमें फंसानेके लिये ऊपरके लेख में वृथा क्यों परिश्रम किया है क्योंकि प्रथम तो ( अधिक मास संजी पञ्चेन्द्रिय नही मानते ) यह लिखनाही प्रत्यक्ष महा मिथ्या है क्योंकि संज्ञी पञ्चेन्द्रिय सब कोई अधिक मासको अवश्य करके मानते हैं सो तो प्रत्यक्ष अनुभवसेही सिद्ध है और 'एकेन्द्रिय वनस्सति अधिक. मासमें नही फलनेका' ातवें महाशयजी लिखते हैं सो भी
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