________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २६४ ]
२३ तेवीशमा-लौकिक पञ्चाङ्गमें दो चतुर्दशी होती है उन्होके मुजब आप लोगोंके पूर्वजोंने भी दो चतुर्दशी लिखी है जिसको आप लोग नहीं मानते हो और लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब युक्तिपूर्वक कालानुसार और पूर्वाचाय्योंकी परम्परासे दो चतुर्दशी वगैरह पर्व तिथियांको माननेवालों को दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है ।
२४ चौवीशमा- आपके पूर्वज कृत ग्रन्थ में तिथिका शुद्धाशुद्ध सम्बन्धी जो प्रमाण बताया है उसी मुजब आप लोग नही मानते हो और स्वच्छन्दाचारीसे ( अपनी मति की कल्पना करके) संपूर्ण प्रथम पर्वतिथिको अपर्व ठहरा करके दूसरी - दो अथवा तीन पल ( एक मिनिट ) मात्र की अल्पतर तिथिमें जाते हो और दूसरे - कालानुसार युक्ति पूर्वक तथा विशेष धर्मबुद्धिके लाभका कारण जानके प्रथम संपूर्ण ६० घड़ी की पर्वतिथिको मानते हैं तैसेही दूसरी पर्वतिथिको भी यथायोग्य मानते हैं जिन्होको दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है ।
इस तरहकी अनेक बातें आपलोगों में उत्सूत्र भाषण की हो रही है जिसका तथा आपके गुरुजी श्री न्यायाम्भो निधिजीनें भी जैन सिद्धान्त समाचारी पुस्तकका नाम रखके अनुमान ५० जगह उत्सूत्र भाषण करा है जिसका भी नमुनारूप थोड़ीसी बातें आगे लिखने में आयेंगे और उपरकी सब बातोंका निर्णय शस्त्रोंके प्रमाणसे और युक्तिपूर्वक मेरे लिखीत इन्हीं ग्रन्थको आदिसें अन्त तक स्थिरचित्त सत्यग्राही होकर निष्पक्षपातसें मध्यस्य दृष्टि रखकर विशुद्धभावसें पढ़नेवाले आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको अच्छी तरहसें मालूम हो सकेगा ;
For Private And Personal