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[ २६३ ] शास्त्रों में भी पूर्णिमा अथवा अमावस्याके दिन ग्रहण होने का कहा है तथापि आप लोग सब दुनियाके तथा शास्त्रों के भी विरुद्ध होकरके प्रगट पने ग्रहणयुक्त पूर्णिमा अथवा अमावस्याको चतुर्दशी ठहराकर चतुर्दशीकाही ग्रहण मानते हो यह तो प्रत्यक्ष अन्याय कारक तत्सत्र भाषण है।
२० वीशमा-चतुर्दशी का क्षय होनेसे पाक्षिककृत्य पूर्णिमा अथवा अमावस्याको करनेका जैनशास्त्रोंमें कहा है तथापि आप लोग नहीं करते हो और दूसरे करने वालोंको दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है।
२९ एकवीशमा-आप लोग एकान्त आग्रहसें सूर्योदयके बिनाकी तिथिको पर्वतिथिमें नही मानना, ऐसा कहते हो परन्तु जब चतुर्दशीका क्षय होता है तब सूर्योदयकी अयोदशीको चतुर्दशी कहते हो सो भी उत्सत्र भाषण है।
२२ बावीशमा-श्रीजनज्योतिषकी गिनती मुजब, चन्द्र के गतिकी अपेक्षासें श्रीचन्द्रप्रज्ञप्ति तथा श्रीसर्यप्रज्ञप्ति यत्ति वगैरह अनेक जैनशास्त्रों में पर्वकी तिथियांके क्षय होनेका लिखा है और लौकिक पञ्चाङ्गमें भी कालानुसार पर्वकी तिथियांका क्षय होता है और जैन पञ्चाङ्गके अभावसे लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब वर्तनेकी पूर्वाचार्योंकी खास आज्ञा है, तैसेही आप लोग-दीक्षा, प्रतिष्ठा वगैरह धर्म व्यवहारके कार्यो में घड़ी, पल, तिथि, वार, नक्षत्र, योग राशिचन्द्र, शुभाशुभ मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास वगैरह सब व्यवहार लौकिक पञ्चाङ्गानुसार करते हो तथापि आप लोग, लौकिक पश्चाइमें जो पर्वतिथियांका क्षय होता है उसीको नही मानते हो और माननेवालोंको दूषण लगाके निषेष करते है। सेो भी उत्सत्र भाषण है।
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