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[ २ ] भाषण भी लिखे हैं जिसके नमूनारूप एक सामायिक विषय सम्बन्धी संक्षिप्तसे ऊपर ही लिखने आया है, और पर्युषणाके विषयमें भी अनेक जगह उत्सूत्र भाषण किये है उसकी भी समीक्षा सही ग्रन्थके पृष्ट १५१ से २१६ तक छप गई है सो पढ़नेसे निष्पक्षपाती सत्यग्राही सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे।
और 'शुद्धसमाचारी'की पुस्तक, पौषधाधिकारे विधिमार्गन उत्सर्गसे-अष्टमी, चतुदर्शी, पूर्णिमा और अमावस्या इमच्यारों पर्वतिथियों में पोषध करनेसम्बन्धी प्रीसूयगडांगजी, उत्तराध्ययन जो सववाईजी, धर्मरत्नप्रकरण वृत्ति, योगशास्त्र वृत्ति, धर्मबिन्दु कृत्ति, नवपद प्रकरण सृत्तिसमवायांग वृत्ति, पंचाशक वृत्ति आवश्यक पूर्णि, तथा सहद वृत्ति और मीभगवतीजीपूत्र वृत्ति, वगैरह शास्त्रोंके पाठ दिखाये थे जिसका तात्पर्यार्थको समझे विनाशास्तोंके विरुद्ध होकर हमेशां पौषधकरनेका ठहराने के लिये मीभावश्यकसूत्रकी चर्णिमें तथा रत्तिने और लघुरत्तिने
और श्रीप्रवचनसारोद्धार इत्तिने, मीसमवायांगजीसूत्रको वृत्तिने श्रीपंचाशकजीकी चूर्णिमें तथा इत्ति और श्रीउपाशकदशांग
त्ति वगैरह अनेक शास्त्रों में श्रावकको ११ पडिमाके अधिकारने पांचवी पडिमाकी विधि "भावक दीनमें ब्रह्मचर्य व्रत पाले और रात्रिको नियम करे" ऐसे खुलासे पाठ हैं तिसपरमी न्यायामोनिधिजीने अन्धपरंपरासे विवेक शून्यहोकर शास्त्रकार महाराजोंकेविरुद्धार्थने अपनीमतिकल्पनासमोआवश्यकपत्ति वगैरह पाठका दिवसका ब्रह्मचर्यपाले रात्रिको कुशीलसेवे" ऐसा वीपरीत अर्थ करके मैथुन सेवाको हिंसाका उपदेश करनेका शाखा कारोंको झूठा दूषण लगाके वहामारी अनर्थ करके जैन सिद्धांत
मक पुस्तक, दुर्लभबोधिका कारण किया।
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