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[ ३६० ] श्रीगच्छाचारपयन्नाकी वृत्तिमें १६ इत्यादि शास्त्रोंमे. मासवृद्धिके अभावसे चन्द्रसम्वत्सरमें चारमासके १२० दिन का वर्षाकालमें ५० दिने पर्युषणा करनेसे पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक ७० दिन रहते है जिसके सम्बन्धमें इसीही ग्रन्थके पृष्ठ ९४ तथा ल और १२० । १२१ वगैरहमें कितनीही जगह पाठ भी छप गये हैं और मासवृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित संवत्सरमें जैनपञ्चाङ्गानुसार आषाढ़ चौमासीसे वीश दिने पर्युषणा करने में आती थी तब भी पर्युषणा के पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते थे इसका भी विशेष खुलासा इसीही ग्रन्थके पृष्ठ १०७ से १२३ तक छप गया है और वर्तमान कालमें जैनपञ्चाङ्गके अभावसे लौकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासेकी रद्धि हो तो भी ५० दिनेही पर्युषणा करने की मर्यादा है सो भी इसीही ग्रन्थकी आदिसे पृष्ठ २७ तक और छठे महाशयजी श्रीवल्लभ विजयजीके लेख की समीक्षामें पृष्ठ २८६ से २९ तक छप गया है इमलिये वर्तमानकालमें दो श्रावणादि होनेसे पाँच मासके १५० दिनका वर्षाकालमें ५० दिने पर्युषणा करनेसें पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते हैं सो भी शास्त्रानुसार और युक्तिपूर्वक होनेसे कोई भी दूषण नही है इसका भी विशेष निर्णय इसी ही ग्रन्थके पृष्ठ १२० से १२९ तक और पृष्ठ १७७ के अन्तसे १८५ तक छप गया है इसलिये दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वालों को पर्युषणाके पिछाड़ी 90 दिन रखने सम्बन्धी और १०० दिन होनेसे दूषण लगाने गम्बन्धी सातवें महाशयजी लिखना अज्ञात सूचक और उत्सूत्र भाषण है। सो पाठकवर्ग विचारलेवेंगे,
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