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[ ३३ ] हठवादी पुरुषोंको तो श्रीप्रवचनसारोद्धार, तथा वृत्ति,
और श्रीधर्मरत्नप्रकरण वृत्ति, और श्रीअभयदेवसूरिजी वगैरह पर्वाचायोंके बनाये समाचारियोंके ग्रन्थ और प्रतिक्रमण गर्भ हेतु, श्रीश्राद्धविधिवृत्ति, वगैरह शास्त्रोंके अनुसार सांवत्सरीमें बारह मास चौवीश पक्षके क्षामणा करनेका ही नहीं बनेगा क्योंकि इन शास्त्रोंमें तो बारह मास चौवीश पक्ष भी नहीं लिखे हैं तो फिर बारह मासा दिका अर्थ ऊपरके शास्त्रोंके अनुसार कैसे मान्य करेंगे और पांचों ही प्रतिक्रमणोंकी विधि ऊपरके शास्त्रों में कही है इसलिये ऊपर कहे सो शास्त्रोंके अनुसार पांच प्रतिक्रमणोंकी विधिको तो मान्य करनीही पड़ेगी और संवत्सर शब्दसे बारह मासका अर्थ ग्रहण करोंगे तो मासद्धि होनेसे तेरह मासका भी अर्थ ग्रहण करनाही पड़ेगा सो तो न्यायकी बात हैं और पहिलेके कालमें ऐसी कुतक करनेवाले विवेकशून्य कदाग्रही पुरुष भी नहीं थे नहीं तो पूर्वाचार्यजी जरूर करके विस्तारसे खुलासा लिख देते क्योंकि जिस जिस समयमें जैसी जैसी कुतके करनेवाले पूर्वाचायके समयमें जो जो हठवादी पुरुष थे जिन्होंको समझाने के लिये वैसे वैसेही खुलासा पूर्वाचाय्याने विस्ता. रसे किया है जैसे कि ईश्वरवादी, नास्तिक, वगैरहोके लिये और श्रीजिनमूर्तिको तथा जिनमूर्तिकी पूजा सम्बन्धी शास्त्रोक्त विधिको वर्णन करी हैं, परन्तु मूर्तिके और पूजाके सम्बन्धमें वर्तमान समय जैसी युक्तियां लिखनेकी जरूरत नहीं थी जिसका कारण कि-उस समय श्रीजिनमूर्तिके तथा उसीकी पूजाके निषेधक दूंढिये, तेरहपन्थी, वगैरह
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