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[ ३१५ ]
तथापि विवेकशून्य हठवादी कोई ऐसी कुतर्के करे कि अमुक शास्त्र में मासवृद्धि के अभाव से चन्द्रसम्वत्सर के लिये बारह मासके क्षामणे कहे हैं परन्तु मासवृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित सम्वत्सर के लिये तो कुछ नही कहा है, ऐसी कुतर्क करने वालेको अज्ञानीके सिवाय, तत्त्वज्ञ पुरुष और क्या कहेंगे क्योंकि एकके उद्देश्य से जो व्याख्या करी होवे उसीके ही अनुसार दूसरेके लियेही यथोचित समझनेकी श्रीजैनशास्त्रों में मर्य्यादा है इसलिये जूदे नाम उद्देश्य करके जूदी जूदी व्याख्या शास्त्रकार नहीं करते हैं परन्तु जो सत्यग्राही विवेकी आत्मार्थी होवेंगे सो तो सद्गुरुकी सेवासे श्रीजैनशास्त्रोंके तात्पर्य्य को समझ के सत्यबात ग्रहण करेंगे और विवेक रहित हठवादी होगें जिसके कर्मेौका दोष नतु शास्त्रकारों का, जैसे- श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यायोंमें प्रसिद्ध बात है कि कोई साधु स्थण्डिले जङ्गल में गयाथा सो कुछ ज्यादा देरीसें गुरु पास आया तब उस साधुका गुरु महाराजने देरी से आनेका कारण पूछा तब उस साधुने रस्ते में नाटकीये लोगों का नाटक देखनेके कारण देरीसें आना हुवा सो कहा, तब गुरु महाराजने नाटकीये लोगोंका नाटक देखने की साधुको मनाई करी सब विवेकी बुद्धिवाले चतुर थे वे तो नाटकणी लुगाइयोंका नाटक वर्जने का भी स्वयं समझ गये, और विवेक बिनाके थे सो तो नाटकणी लुगाइयोंका नाटक देखने को खड़े रहे, तब गुरु महाराजके कहने पर विवेक रहित होनेसे बोलेकी आपने नाटकीये लोगोंका नाटक देखनेकी मनाई करोथी परन्तु नाटकणी लुगाईयों का नाटक देखने की तो मनाई नही करी थी तब गुरु महा
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