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[ ३६६ ] १७ शास्त्रों के प्रमाण अधिक मासके कारणसे तेरह मास छवीश पक्षका अभिवर्द्धित संवत्सर संबंधी छपे हैं उसी शास्त्रोंसे तथा यक्तियोंसें और प्रत्यक्ष अनभवसे भी अधिक मासके कारणसे पांच मासका अभिवर्द्धित चौमासा प्रत्यक्ष सिद्ध होता है क्योंकि शीतकालके, उष्णकालके, और बर्षाकालके चार चार मासका प्रमाण है परन्तु जैन पंचांगा. नुसार और लौकिक पंचांगानुसार जिस ऋतुमें अधिक मास होवे उसी ऋतुका अभिवर्द्धित चौमासा पांच मासके प्रमाणका मानना स्वयं सिद्ध है इस लिये अधिकमासके कार. णसें चौमासामें पांचमास दशपक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीशपक्षका अवश्य करके व्यवहार करना चाहिये ।
शङ्का-अजी आप अधिक मासके कारणसें चौमासामें पांच मास, दशपक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीश पक्षका व्यवहार करना कहते हो सो क्षामणाके अवसरमें तो हो सकता है, परन्तु मुहपत्ती (मुखवस्त्रिका )की प्रतिलेखना करते, वांदणा देते, अतिचारोंकी आलोचना करते वगैरह कार्यों में चौमासीमें पांच मास, दश पक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीश पक्षका व्यवहार कैसे हो सकेगा।
समाधान-भो देवानुप्रिय-जैसे मास वद्धिके अभाव, चौमासीमै चार मास, आठ पक्षका और सांवत्सरीमें बारह मास, चौवीश पक्षका, अर्थ ग्रहण करने में आता है और मुखवस्तिकाकी प्रतिलेखनामें, वांदणा देने में, अतिचारोंकी आलोचना वगैरह कार्यों में उतने ही मास पक्षोंकी भावना होती है,तैसे ही मास वद्धि होने के कारणसें चौमासीमें पांच मास,दश पक्षका और सांवत्सरीमें तेरह मास छवीस पक्षका
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