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[ ३७० ] अर्थ ग्रहण होता है इसलिये चौमासीमें और सांवत्सरिक कार्यों में भी उतने ही मास पक्षांकी भावना करने में आती है, . और जैसे चंद्रसंवत्सरमें-सांवत्सरिक प्रतिक्रमणमें क्षामणाधिकारे 'बारसगहं मासाणं चउधीसरहं पक्खाणं तिन्निसयसट्ठी राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोलके बारह मास, चौवीश पक्ष, तीन सौ साठ ( ३६० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है और चौमासी प्रतिक्रमणमें
चउराहं मासाणं अट्ठण्हं पक्वाणं वीसुत्तरसय राइंदियाणं' इत्यादिः पाठ बोलके चार मास, आठ पक्ष, एक सौ वीश रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है, तैसे ही अभि. वर्द्धित संवत्सरमें भी सांवत्तरिक क्षामणाधिकारे तेरमगह मासाणं छठवीसरहं पक्वाणं तिन्निसयणउ राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोलके तेरह मास,छवीश पक्ष, तीन सौ नब्बे (३९० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है और अभिवर्द्धित चौमासेमें भी 'पंचरहं मासाणं दसरहं पक्वाणं पंचासुत्तरसय राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोलके पांच मास, दश पक्ष एक सौ पचास ( १५० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है।
ऊपरमें श्रीआवश्यकचूर्णि, श्रीप्रवचनसारोद्धार, श्रीधर्मरत्न प्रकरणवृत्ति और श्रीअभयदेवसूरिजीकृत समाचारी वगैरह शास्त्रोंके प्रमाण प्रतिक्रमण संबंधी लिखने में आये हैं, उन्हीं शास्त्रों के अनुसार ( संवच्छर ) संवत्सर शब्दके ऊपरोक्त न्यायानुसार चंद्र,अभिवर्द्धित इन दोन संवत्सरोंका अर्थ ग्रहण होनेसे क्षामणा संबंधी ऊपरका पाठ उपरोक शास्त्रोंके अनुसार ही समझना ।
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