________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
में
[ ३६६ ]
श्यक चूर्णि में १ तथा वृहद्वृत्ति में २, और लघुवृत्ति में ३ श्रीप्रवचन सारोद्वार में ४, तथा बृहद्वृत्ति में ५, और लघुवृत्ति में ६, श्रीधर्मरत्न प्रकरणको वृत्तिमें 9, श्री अभयदेव सूरिजी - कृत समाचारी ग्रन्थ में ८, श्रीजिनप्रभसूरिजीकृत विधि प्रपा समाचारी में ल, श्रीजिनपति सूरिजीकृत समाचारी में १०, श्रीसमाचारी शतकमामा ग्रन्थ में ११, श्रीषडावश्यक ग्रंथ १२, श्री तपगच्छ के श्रीजयचन्द्र सूरिजीकृत प्रतिक्रमण गर्भ हेतुनाना ग्रंथ में १३, श्रीरत्नशेखरसूरिजीकृत श्रीश्राद्धविद्धि वृत्ति में १४, प्राचीन प्रतिक्रमण गर्भहेतुनाना ग्रंथ में १५, और श्री पूर्वाचार्यों के बनाये समाचारियोंके चार ग्रंथों में १९, इत्यादि अनेक शास्त्रोंमें देवसी और राइ प्रतिक्रमणके अनंतर पाक्षिक प्रतिक्रमणके मजबही चौमासी और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की विधि कही है और चौमासी सांवत्सरिक शब्दका नामांतर कहके चौमासी में २०, लोगस्स का कायोत्सर्ग तथा पांच साधुओंको क्षमानेकी और सांवत्सरिक में ४० लोगस्सका कायोत्सर्ग तथा ७ वा वगैरह साधुओंको क्षमाणेकी भिन्नता दिखाई है और क्षमाणा के अवसर में संवच्छर शब्द का ग्रहण करने में आता है । संवत्सर कहो । सांवत्सरी कहो । संवछरी कहो । बार्षिक कहो । सबका तात्पर्य एक है और संवत्सर शब्द यद्यपि नक्षत्र संवत्सर १ । ऋतु संवत्सर २ । सूर्य संवत्सर ३. चंद्र संवत्सर ४. और अभिवर्द्धित संवत्सर ५ इन पांच प्रकार के अर्थों में ग्रहण होता है परन्तु क्षामणा के अवसर में तो दो अर्थ ग्रहण करने में आते हैं जिसमें प्रथम मास वृद्धि के अभाव से चन्द्र संवत्सर के बारह मास और चौवीश पक्ष अनेक शास्त्रों में कहे हैं और दूसरा मास
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal