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[ ३५९ ]
तत्सूत्र भाषण करने वाले हैं तैसेही सातवें महाशय जी आप अधिक मासको गिनती में नही लेते हुवे अधिक मासको गिनती में ले करके पर्युषणा करने वालोंको मिथ्या दूषण लगाके उत्सूत्र भाषण में ऊपरोक्त महाराजों की आशातना करके संसार वृद्धिका कुछ भी भय नही करते हैं । हा अति खेदः ?
और आगे फिर भी सातवें महायजीने पर्युषणा विचारके तीसरे पृष्ठको ११ वीं पंक्तिसें १० वीं पंक्ति तक लिखा है ( प्रथम दोष- आषाढ़ चौमासी बाद पचास दिनके भीतर पर्युषणापर्व करे इन नियमकी रक्षा करते हुए तत्तुल्य दूसरे नियमका सर्वथा भङ्ग होता है क्योंकि पचासवें दिवस संवत्सरी और उसके पीछे सत्तरवें दिन चौमासी प्रतिक्रमण करके पीछे मुनिराजोंको विहार करना चाहिये यदि दूसरे श्रावणमें सांवत्सरिक कृत्य करोंगे तो सौ दिन बाकी रहेंगे तब सत्तर दिनका नियम कैसे पालन किया जायगा इसका विचार करो )
पाठकवर्गको दिखाता पर्युषणा करने वालों लगाया सो निःकेवल
ऊपर के लेखकी समीक्षा करके हूं कि ऊपर के लेख में दूसरे श्रावण में को सातवें महाशयजीने प्रथम दोष अज्ञता के कारण से मिथ्या लिखके उत्सूत्र भाषण किया है क्योंकि श्रीनिशीथ भाष्य में १, तथा चूर्णिमें २, श्रीबृहस्कल्पभाष्य में ३, तथा चूर्णि में ४, और वृत्ति में ५, श्रीसम - वायाजी सूत्र में ६, तथा वृत्तिमै 9, श्रीस्थानाङ्गजीको वृत्ति में ८ श्री कल्पसूत्रकी नियुक्लिकी वृत्ति में ९, श्रीकल्पसूत्रकी पाँच व्याख्यायां में १४ श्रीपर्युषणा कल्पचूर्णिमे १५
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