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[ ३५३ ] मुजब तथा उन्हींकी अनेक व्याख्यायोंके पाठ मुजब वर्त. मान काल में दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें आषाढ़ चौमासीसें ५० दिने श्रीपर्युषणापर्वका आराधन आत्मार्थी प्राणी करते हैं और दूसरे भव्यजीवोंकों कराते हैं जिन्होंको तो मिथ्या दूषण लगा करके संसार बढ़ाने वाले ठहराना और आप श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजों की आज्ञा विरुद्ध तथा पञ्चाङ्गीके प्रत्यक्ष प्रमाणोंको छोड़ करके अपनी मतिकल्पनासें यावत् ८० दिने पर्युषणा करते हैं और बालजीवोंकों भी कुयुक्तियोंसें भ्रमा करके कराते हैं इसलिये श्रीजिनाज्ञाकी सत्यबातका निषेध करके भी शुद्ध परूपक बनते हुवे संसार वृद्धि का भय नही करना सो मिथ्यात्वीके सिवाय और कौन होगा। _ और आगे फिर भी सातवें महाशयजीने पर्युषणा विचारके दूसरे पृष्ठके अन्त २१ । २२ वीं पंक्तिमें लिखा है कि ( उन जीवों पर भावदया लाकर सिद्धान्तानुसार परोपकार दृष्टि से पर्युषणा विचार लिखा जाता है) इस लेखसे दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वालों पर और करानेवालों पर भावदया लाकर सिद्धान्तानुमार परोपकार दृष्टि से पर्युषणा विचार लिखनेका सातवें महाशयजी ठहराते हैं तो निःकेवल बालजीवोंको कदाग्रह में फंसाकरके मिथ्यात्ववढ़ानेके लिये संसार वृद्धि के निमित्तभूत उत्सूत्र भाषण करते है क्योंकि प्रथमतो दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वाले पञ्चाङ्गी के अनेक शास्त्रानुसार करते हैं जिसके सम्बन्धमें इसीही ग्रन्थकी आदिसे २१ पृष्ठ तक अनेक शास्त्रों के प्रमाण-पाठार्थ सहित छप गये हैं इसलिये शास्त्रानुसार वर्तने वालोंको
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