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[ ३५२ ] इसलिये सत्यपक्षका निरादर करके असत्य पक्षका स्थापन करनेवाले भी सातवें महाशयजी है इस बातको निष्पक्ष पाती आत्मार्थी विवेकी पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे ;
और श्रीकल्पसत्रके मूलपाठानुसार तथा उन्हीकी अनेक व्याख्यानुसार आषाढ़ चौमासीसें ५० दिने दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करनेवालों पर द्वेष बुद्धि करके आक्षेपरूप सातवें महाशयजीने पर्युषणा विबारके दूसरे पृष्ठकी १८॥ वीं पंक्ति में २० वी पंक्ति तक लिखा है कि ( वस्तुतः तो भगवान्की आज्ञाके आराधक भव्यजीवों पर कल्पित दोषोंका आरोप करके अपने भक्तोको भ्रमजाल में फँसाकर संसार बढ़ाते हैं)
सातवें महाशयजीका इस लेखको देखकर मेरेको वड़ाही आश्चर्य सहित खेद उत्पन्न होता है कि जैसे ढूंढिये तेरहा पन्थी लोग अपने कदाग्रह की कल्पित बातोंको स्थापन करनेके लिये श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञानुसार वर्त्तने वाले पुरुषोंकी झूठी निन्दा करके संसार वृद्धिका कारण करते हैं तैसेही सातवें महाशयजी भी इतने विद्वान् कहलाते हुवे भी अपने कदाग्रहकी कल्पित बातको स्थापन करनेके लिये श्रीजिनेश्वर भगवान्को आज्ञानुसार वर्तनेवाले पुरुषोंकी जूठी निन्दा करके संसार वृद्धिका कारण करते हैं क्योंकि-श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराजांकी आज्ञानुसार सूत्र, नियुक्ति, भाष्य,चूर्णि, वृत्ति और प्रकरणादि अनेक शास्त्र में प्रगटपने आषाढ़ चौमासीसें दिनांकी गिनतीके हिसाबसे ५० दिने निश्चय करके श्रीपर्युषणापर्वका आराधन करना कहा है उसीके अनुसार श्रीकल्पमत्रके मूलपाठ
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