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[ ३४१ ] हुवे श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध पञ्चाङ्गीके प्रमाण रहित कल्पित बातोंको छोड़ करके श्रीजिनाज्ञा मुजब पञ्चाङ्गीके प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वक सत्यवातांको ग्रहण करके अपनी आत्माका कल्याण करनेके कार्यों में उद्यम करना चाहिये जिससे आत्मकल्याण होगा नतु तत्वातत्वका विचारशून्य अन्धपरपरम्परामें-जैसे कि, ८० दिने पर्युषणा करना १, फिर मायावृत्तिसें अधिक मासका निषेध भी करना २, तथा श्री वीरप्रभुके छ कल्याणकोंका निषेध करना ३, और सामा. यिक करते पहिलेही इरियावही करना ४, और आंबीलमें अनेक द्रव्य भक्षण करने कराने ५, इत्यादि अनेक बातें शास्त्रों के प्रमाण बिना गड्डरीह प्रवाहकी तरह आत्मार्थियोंको त्यागने योग्य गच्छ कदाग्रह की द्रव्य परम्परासें प्रचलित है नतु शास्त्रोंके प्रमाणानुसार भावपरम्परासें क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रोंमें दिनोंकी गिनतीसें ५० दिने पर्युषणा कही है १, और अधिकमासको भी खुलासा पूर्वक गिनती में लिया है २, तथा श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकोंको भी अच्छी तरह से खुलासा पूर्वक कहे हैं ३,और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण करना कहा है ४, और आंबीलमें भी दो द्रव्योंका भक्षण करना कहा है ५, सोही कपरोक्त बातें शास्त्रानुसार भावपरम्परामें होनेसे आत्मा. र्थियोंको ग्रहण करने योग्य है इन ऊपरकी बातोंका निर्णय आठोंही महाशयोंके उत्सूत्र भाषणके लेखोंकी समीक्षा सहित इस ग्रन्थको संपूर्ण पढ़नेवाले निष्पक्षपाती तत्व. ग्राही सज्जन पुरुषोंको स्वयं मालूम हो जायेगा।
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