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[ ३३५ ] इत्यादि, इसी तरहसे अनेक बातों बहुत उत्सूत्रोंसे वहा अनर्थ किया है उसके सबका निर्णयतो "आत्मभ्रमोच्छेदन भानुः" के अवलोकनसे अच्छी तरहसे हो जावेगा। __ और न्यायाम्भोनिधिजीने 'जैन सिद्धान्त समाचारी' पुस्तकका नाम रक्खा परन्तु वास्तवमें उत्सूत्र भाषणोंके और कुयुक्तियों के संग्रहको पुस्तक होनेसे आत्मार्थी भव्यजीवोंके मोक्षसाधन में विघ्नकारक और प्रीजिनानासे बालजीवोंकी श्रद्धाभ्रष्ट करनेवाली मिथ्यात्वके पाखन्डको भ्रमजालरूप हैं सो इसके बनानेवालोंको, तथा ऐसी जाल बनानेमें संसारद्धिको हेतु भत खूबही दलाली कौशिस करनेवालोंकों, और मिथ्यात्वको वढ़ा करके संसार, भ्रमानेवाली ऐसीजाल प्रगट करने में मीभावनगरकी श्रीजैनधर्मप्रसारकसभाके मेम्बरलोग उस समय आगेवान् हुए जिन्होंको, और इसके बनानेको खुसीमानकर अनुमोदना करनेवालोंको और इसी मुजब अन्धपरंपराके गाडरीह प्रवाहकी तरह चलकर प्रीजिनाजानुसार सत्यबातों को निन्दा करनेवालोंको मौजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके माराधक सम्यक्त्वी आत्मार्थी जैनी कैसे कहे जावे इस बातको तत्त्वग्राही मध्यस्थ सज्जनस्वयं विचारलेवैगे
और शास्त्रोंकेविरुद्ध उत्सूत्रप्ररूपणा करनेवालेको मिथ्यात्वी अनन्त संसारी अनेकशास्त्रों ने कहा है और न्यायाम्भोनिधिजी नाम धारक भीआत्मारामजीने तो एक 'जैन सिद्धान्त समाचारी' नामक पुस्तक इतने शास्त्रोंके विरुद्ध लिखके इतने उत्पन्न भाषण किये हैं तो फिर पहिले दू'टकमतकी दीक्षाने और अन्यकार्यो में कितने सत्सूत्रमाषण करके कितने शास्त्रोकेविरुद्ध प्ररूपणाकरी होगी जिसके फल विपाकका कितना अनन्त संसार कढ़ाया होगा सो तो नीचानीजी महाराज जाने।
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