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[ २८६ । प्रमाण किये हैं-तैसेही छठे महाशयजी आप भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी वाणीरूप पञ्चाङ्गीको श्रद्धापूर्वक प्रमाण करनेवाले आत्मार्थी मोक्षाभिलाषी होवोंगे तो श्रीखरतरगच्छके आचार्यों के शावानुसार युक्तिपूर्वक लेखों को अवश्यही प्रमाण करके अपने मिथ्या हठवादको जलदी ही छोड़ देवोंगे तो अपर कहे सो दूषणोंका बचाव होनेसे बहुत लाभका कारण होगा आगे इच्छा आपकी ;
और आगे फिर भी दम्भप्रियेजीने लिखा है कि (तुमने श्रीजिनपति सूरिजीकी समाचारीका पाठ लिखा है कि दो श्रावण होवे तो पीछले श्रावणमै और दो भाद्रपद होवे तो पहिले भाद्रपदमें पर्युषणापर्व-सांवत्सरिक कृत्य करना ) यह लिखना मी छठे महाशयजी आपका कपटयुक्त है क्योंकि श्रीबुद्धिसागरजीने पूर्वधरादि महाराजकृत तीन शास्त्रोंके पाठ लिखके भेजे थे जिसमेंके पूर्वधराचार्यजी महाराजके मूलसूत्रके तथा चूर्णिके दोन पाठोंको छुपाते हो सोही छठे महाशयजी आपका कपट है इसलिये में इस जगह प्रथम आपका कपटको खोलकरके पाठक वर्गको दिखाता हूं
१ प्रथम श्रीचौदह पूर्वधर अतकेवली श्रीभद्रबाहु स्वामीजी कृत श्रीकल्पसूत्रका मूलपाठ लिखा था उसी पाठमें आषाढ़ चौमासीसें एकमास और वीशदिने पर्युषणा करना कहा है श्रावण अथवा भाद्रपदका नियम नही कहा है परन्तु ५० दिनका नियम है सोही दिनोंकी गिनतीसे ५० दिने पर्युषणा करना चाहिये श्रीकल्पसूत्रका मूलपाठ भावार्थ सहित इसीही ग्रन्यके आदिमें पृष्ठ ४।५।६में छप गया है सोही पाठ इस वर्तमान कालमें आत्मार्थियोंको प्रमाण करने योग्य है ;
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