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[ ३११ ] श्रीश्राद्धदिन कृत्य मूलसूत्रमें १३, श्रीतपगच्छनायक सुप्रसिद्ध श्रीमान् देवेन्द्रसूरिजी कृत श्रीश्राद्धदिनकत्यसूत्रकी वृत्तिमें १४, श्रीयशोदेवसूरिजी कृत श्रीवन्दनकचूर्णिमे १५, श्रीखरतरगच्छके श्रोअभयदेवसूरिजी रुत श्रीसमाचारी ग्रन्थमे १६, तथा श्रीजिनप्रभसूरिजी कृत श्रीविधिप्रपा नामा समाचारी ग्रन्थमे १७, और श्रीखरतरगच्छके दूसरे श्रीवर्द्धमानसूरिजी कृत श्रीआचारदिनकर ग्रन्थमें १८, श्रीतपगच्छके श्रीकुलमण्डनसूरिजो कत श्रीविचारामृत संग्रह ग्रन्थमें १९, तथा श्रीतपगच्छके सुप्रसिद्ध श्रीरत्नशेखरसूरिजी कृत श्रीश्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्रकी वृत्ति ( वन्दित्तासूत्रकी अर्थदीपिकानामा टीका) में २०,और सुप्रसिद्ध श्रीहीरविजयसूरिजीके सन्तानिये श्रीमानविजयजी उपाध्यायजी कृत श्रीधर्मसंग्रह ग्रन्थको वृत्ति-जो कि सुप्रसिद्ध श्रीमान् यशोविजयजी उपाध्यायजीने शुद्ध करी है उसीमें २१, इत्यादि अनेक शस्त्रों में श्रीपूर्वधरादि पूर्वाचाय्याने और श्रीखरतरगच्छके तथा श्रीतपगच्छादि अनेक गच्छोंके अनेक पूर्वाचायोंने प्रावकके सामायिक विधिमे (सामायिकाधिकारे) प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेसें इरियावहीका प्रतिक्रमण करना खुलासापूर्वक कहा है जिसके विषयमें सब पाठ यहां लिखनेसें बहुत विस्तार होजावे तथापि श्रीतपगच्छके वर्त्तमानिक सत्यग्राही आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको निःसन्देह होनेके लिये अपनेही पूर्वजोंके बनाये ग्रन्थोंके पाठ इस जगह लिख दिखाता हुं
श्रीतपगच्छनायक सुप्रसिद्ध विद्वान् अनेक ग्रन्थकार श्रीदेवेन्द्रसूरिजी कृत श्रीश्राद्धदिनकृत्य सूत्रकी वृत्तिका पाठ नीचे मुजब जानो:
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