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[ ३२४ ] इरियावही स्थापन करी सो भी उत्सूत्र भाषणरूप है इसका भी विस्तार 'आत्म० के' पृष्ठ ९३ ७ ९६ के मध्य तक छपगया है।
१९ ग्यारहमा-श्रीखरतरगच्छके श्रीअभय देवसरिजी कृत श्रीसमाचारी ग्रन्थमें सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावहीका खुलासा पूर्वक पाठ है तथापि उस पाठको छुपा करके अपवा लुप्त करके ग्रन्यकार महाराज के विरुद्धार्थमें मिथ्यात्वरूप रोगके उदयसे किसी भारी कम प्राणीने अपनी मति कल्पना मुजब नवीन पाठ बना करके समाधारी ग्रन्थमें लिख दिया है उसीकोही न्यायाम्भोनिधि जीने जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकके पृष्ठ ३६ में लिखके सामायिकमें प्रथम इरियावही स्थापन करी है सो भी महान् उत्सत्र भाषण है इसका विस्तार पूर्वक निर्णय 'आत्मभ्रमोच्छेदनभानुः' नामा ग्रन्थ के पृष्ठ ९६ के अन्तसें पृष्ठ १०४ तक छपगया है।
१२ बारहमा--श्रीखरतरगच्छवाले सामान्य विशेष पाठ को; तथा श्रीआवश्यक वहत्तिके, और चूर्णिके, पाठको मान्य करते हैं तथापि न्या० ने 'जैन ना० पु० के' पृष्ठ ३८ में सामान्य पाठको तथा श्रीआवश्यक वहत्तिके और चूर्णिके पाठको तुम मान्य नही करते हो ऐसे लिखके श्रीखरतर गच्छवालोंको मिथ्या दूषण लगाया सी भी उत्सूत्र भाषण है इसका भी विस्तार 'आत्म० के' पृष्ठ १०७ से १११ तक छपगया है।
१३ तेरहमा--खास न्यायाम्भोनिधिजी अपनी बनाई 'चतुर्थ स्तुतिमिर्णय' नामा पुस्तकके पृष्ठ ८८ के मध्य में श्री
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