________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३२९ ] - अब सत्यग्राही सज्जनपुरूषोंको निष्पक्षपाती हो करके विचार करना चाहिये कि-एक भामायिक विषयमें प्रथम करेमिभंते पीछे इरिथावही सन्धी २१ शास्त्रों के प्रत्यक्ष प्रमाणोंको न्याय के समुद्र हो करके भी श्रीआत्मारामजीने छोड़ दिये और आप उन्ही शास्त्रों के पाठोंकी श्रद्धा रहित बनकरके उन्ही शास्त्रों के तथा उन्ही शास्त्रकार महाराजोंके विरुद्धार्थमें प्रथम इरियावही स्थापन करने के लिये ऊपरोक्त कैसा अनर्थ करके-कहीं उपधानसम्बन्धी, कहीं माधुके जाने आने सम्बन्धी, कहीं चैत्यवन्दनसम्बन्धी, कहीं स्वाध्यायसम्बन्धी, कहीं पड़ावश्यकरुष प्रतिक्रमणसम्बन्धी, कहीं पौषधसम्बन्धी, इत्यादि अनेक तरहके अन्य अन्य विषयोंके सम्बन्धमें शास्त्रकार महाराजोंने इरियावही कही है जिसके बदले उन्हीं शास्त्रकार सहाराजों के विरु. द्वार्थमें सामाधिक में प्रथम इरियावही स्थापन करनेके लिये आगे पीछे के पाठोंकों छोड़ करके अधूरे अधूरे पाठ लिखते न्यायाम्भोनिधिजी को सवका कुछ भी भय नही लगा और इश लौकिकमें भी अपनी विद्वत्ताकी हासी करानेके कारणरूप इतना अन्याय करते कुछ शर्म भी नहीं आई इसलिये सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही शबी गच्छों के प्रभाविक पुरुषोंने अनेक शास्त्रों में प्रत्यक्ष पने अविसंवादरूप खुलासा पूर्वक लिखी है जिसको जानते हुवे भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वके जोरसे श्रीहरिभद्रमूरिजी, श्रीअभयदेवमूरिजी, श्रीदेवेन्द्रसूरिजी वगैरह प्रभाविक पुरुषोंको विसंवादीका मिथ्या दूषण लगा करके मामारि कमें प्रथम इरियावही स्थापनेका विसंवाद
כט
For Private And Personal