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[ १९ ] जीने जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकमें जो जो उत्सूत्र भाषण किये है जिसका अच्छीतरहसें विस्तार पूर्वक निर्णय छप रहा है परन्तु इस जगह भी न्यायदृष्टिवाले आत्मार्थी भव्यजीवोंको निःसन्देह होनेकेलिये सामायिकाधिकारसम्बन्धी न्यायाम्भोनिधिजीनें जो जो उत्सूत्र भाषण किये हैं उसीका निर्णय के साथ संक्षिप्तसें दिखाता हुं
१प्रथम-सामायिकाधिकारे पहिले करेमिभंतेका उच्चारण कियेपीछे इरियावहीका प्रतिक्रमण करना अनेक शास्त्रोंमें कहा है सो ऊपर ही छपगया है और सामायिकाधिकार सम्बन्धी कोई भी शास्त्रोंमें पूर्वापर विरोधी विसंवादी वाक्य नही है याने कोई भी शास्त्रमें सामायिकाधिकारे प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंतेका उच्चारण किसी भी पूर्वाचार्यजीने नहीं कहा है तथापि न्यायाम्भोनिधिजी 'जैनसिद्धान्त समाचारी' नामक पुस्तक के पृष्ठ ३० के मध्यमें सामायिकविधि सम्बन्धी अनेक शास्त्रोंके आपसमें पूर्वापर विरोध विसंवाद ठहराते हैं सो उत्सूत्र भाषण है इसका विस्तार 'आत्मनमोच्छेदनभानुः' नामा ग्रन्यके पृष्ट ३ से 9 तक छप गया है और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही सबी शास्त्रोंमें कही है जिसके विषयमें श्रीपूर्वधरादि प्रभाविक पुरुषोंके बनाये ग्रन्थोंमें तथा श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छादिके पूर्वजोंने भी ऊपर मुजबही कहा है उसीके अनेक पाठ अर्थ सहित 'आत्मभ्रमोच्छेदनभानुः' के पृष्ठ ७ से २६ तक खुलासा पूर्वक छपगये है परन्तु सामायिकमें प्रथम इरियावही पीछे करेमि भंते किसी भी शास्त्र में नही लिखी है सोही दिखाता हुं :
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