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[ ३०९ ] और (ढूंढिोले पण याद राख सामायिक लेतां प्रथम इरियावहिया केहवी अने पछी करेमिभंतेनो पाठ केहवो १, श्रीमहावीर स्वामिना पांच कल्याणक २, वगेरे बातोमां तो तमोने पण बाधाज आवशे माटे तपगच्छ उपरथयेल आक्षेप जोई फुलीने फालका न थाशो आबावतमा तो तमो पण जवाब दारजछो) इन अक्षरों करके छठे महाशयजी अपना मन्तव्य स्थापन करनेके लिये इस जगह ढूंढि योंको भी अपने सामिल मिलाते हुवे उन्होंकाही सरणा ले करके सामायिक सम्बन्धी तथा कल्याणक सम्बन्धी श्रीखरतरगच्छवालोंके साथ वाद विवादरूप युद्ध करना चाहते हैं और बहुत वर्षोंका गच्छ सम्बन्धी विवाद दबा हुवा था, उसीको भी पीछाही सरू करके शुद्धसमाचारी प्रकाशकी सत्य बातोंका उत्तररूपमें जैन सिद्धान्तसमाचारी नामक, परन्तु वासत्विकमें उत्सूत्र भाषणके संग्रहकी-पुस्तकको आगे करके अपना मन्तव्यको पुष्ट किया इसलिये इस जगहऊपरकी दोनं पुस्तकोकी सब बातोंके सत्य असत्यका निर्णय करके मोक्षाभिलाषी सत्यग्राही भव्यजीवोंको दिखाना मेरे को उचित है परन्तु बहुत विस्तार हो जानेके कारणसे नमूनारूप थोड़ीसी बातोंका निर्णय करके संक्षिप्तसे दिखाता हुं, जिसमें प्रथम शुद्धसमाचारी प्रकाशमें सामायिकका अधिकार है तथा जैनसिद्धान्तसमाचारी नामक पुस्तकमें भी प्रथम सामायिकका अधिकार है और छठे महाशयजी भी ढूंढियोंका साथ करके प्रथम सामायिक सम्बन्धी लिखते हैं इसलिये मेंभी इस जगह प्रथम सामायिक सम्बन्धी शास्त्रार्थ पूर्वक थोडासा लिखता हुं :
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