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[ ३०८ ]
बोलके, संसार वृद्धिका कारण करे तो कोई आश्चर्यकी बाब नहीं है तैसेही छठे महाशयजी दम्भप्रियजी श्रीवल्लभविजयजीने भी किया, अर्थात् प्रश्नोत्तरमालिका पुस्तक में शास्त्रोंके पाठ दिखाये और शास्त्रानुसार कितनी ही बातें भी लिखी है उसको प्रमाण करना तो दूर रहा परन्तु तपगच्छ उपर हुमलो ( जुलम ) करनेका ठहरा करके श्रीजैनशास्त्रों की बातोंके अवर्णवाद लिखे सो तो उन्हें केही कमका दोष है ;
और आगे फिर भी प्रश्नोत्तरमालिका सम्बन्धी छठे महाशयजी लिखते हैं कि ( जे जे सवालो लख्या छे प्रायः सर्वना उत्तरो कलकत्ता थी प्रगट थयेल चोपड़ीना उत्तररूपे जैनसिद्धान्त समाचारी नामे भावनगरनी जइनधर्मप्रसारक सभा तरफ थी छपायेल चोपड़ीमां आवी गयेल छे ) इस लेख पर भी प्रथमतो मेरेको इतनाही कहना है कि-कलकत्तेसें चोपड़ी ( पुस्तक ) प्रगट होनेका जो छठे महाशयजी लिखते हैं सो तो भूलसे मिथ्या है क्योंकि कलकत्तेसे पुस्तक प्रगट नही हुई थी किन्तु (न्यायाम्भोनिधिजी केही उत्सूत्र भाषणके अन्यायपर) मकसूदाबाद के श्रावकने मुंबई में छपवाकर 'शुद्ध समाचारी प्रकाश' नामा पुस्तक प्रगट किई है उसीमें श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यजी महाराजोंकी आज्ञानुसार पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रोंके पाठार्थी सहित जो जो बाते लिखने में आई है उसीका और प्रश्नोत्तरमालिकामें भी जो जो शास्त्रोंकी बातें लिखके सवाल पूछने में आये हैं । उसीके एक सवालका भी जवाब में उत्सूत्र भाषणके सिवाय शास्त्रार्थ पूर्वक कुछ भी जवाब जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकमें नही लिखा है ।
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