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[ २६ ] योंसे पूजता मानताके लिये पण्डिताभिमानके जीरखें उत्सूत्रभाषणसें संसार वृद्धिका भय न करते बालजीवोंकों कदाग्रहमें गेरके मिथ्यात्वको बढानेवाले आप हो सोतो श्रीजैनशास्त्रोंके तात्पर्यको जाननेवाले विवेकी सज्जन अवश्यही मानेगें यह तो प्रसिद्धही न्यायकी बात है ;
तीसरा यह है कि दूसरे प्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणापर्व करने संबन्धी पञ्चाङ्गीका पाठ पूछके मानने को छठे महाशयजी आप तैयार हुए हो परन्तु अपनी तरफसे पंचांगीका पाठ बता सकते नहीं हो इससे यह भी सिद्ध होगया कि इस वर्तमान कालमें दो श्रावण अथवा दो भाद्रपद होनेसे पर्युषणापर्व कबकरना जिसकी आपको अबीतक शास्त्रोंके प्रमाण मुजब पूरे पूरी मालूम नहीं है तो फिर दूसरोंको आज्ञा भंगका दूषण लगाके निषेध करना यहतो प्रत्यक्ष आपका महामिथ्या उत्सूत्रभाषणरूप वथा ही झगड़ेको बढानेवाला हुवा सो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ;
चौथा औरभी सुनो यहतो प्रसिद्ध बात है कि आषाढ चौमासीसे ५० दिने श्रीपर्युषणा पर्वका आराधन वार्षिक कृत्यादिसें करना कहा है इस न्यायके अनुसार दूसरे श्रावण में अथवा प्रथम भाद्रपदमें ५० दिने पर्युषणा करना सोतो अल्प बुद्धिवाले भी समझ सक्ते है। तो फिर क्या छठे महाशयजीकी इतनी भी बुद्धिनहींहै सो ५० दिने दूसरे प्रावण में अथवा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणा करने संबंधी पञ्चाङ्गी का पाठ पूछते है। इसपर कोई कहेगा कि छठे महाशयजी की ५० दिने पर्युषणा करनेकी बुद्धि तो हैं। इसपर मेरेको
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