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करनी चाहिये। तथापि पर्युषणा करने योग्यक्षेत्र नही मिले तो विजन ( जङ्गल ) में भी वृक्ष नीचे पचास वें दिन जरूर पर्युषणा करनी परन्तु पचासमें दिनकी रात्रिको उल्लङ्घन नही करना यह बात तो प्रसिद्ध है इसीके सम्बन्धमें इन्ही ग्रन्थके आदिमें श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रकी वृत्तिका पाठ पृष्ठ १८१९ में और श्रीवृहत्कल्पवृत्तिका पाठ पृष्ठ २१ से २५ तक, और श्रीदशाश्रुतस्कन्धसत्रकी चूर्णिका पाठ पृष्ठ ९१ से २४ तक, और श्रीनिशीथसूत्रकी चूर्णिका पाठ पृष्ठ १५ सेंल तक, तथा तद्भावार्थ पृष्ठ १०० से १०५ तक छप गया है,--
उपरोक्त शास्त्रों में आषाढ़ चौमासीसें पांच पांच दिनोंकी वृद्धि करते (दश पञ्चकमें) पचासवें दिने प्रसिद्ध पर्युषणा मासवृद्धिके अभावसें चन्द्रसंवत्सरमें करनी कही है
और मासद्धि होनेसें अभिवर्द्धित संवत्सरमें पांच पांच दिनोंकी वृद्धि करते (चौथे पञ्चकमें) वीशवें दिने प्रसिद्ध पर्युषणा कही सो प्राचीनकालाश्रय पूर्वधरादि उग्रविहारी महाराजोंके लिये श्रीजैनज्योतिषके पञ्चाङ्ग मुजब वर्त्तनेके सम्बन्धमें कही परन्तु अबी इस वर्तमानकालमें जैन पञ्चाङ्ग के अभावसे और पड़ते कालके कारणसे ऊपरका व्यवहार श्रीसन्धकी आज्ञासे विच्छेद हुवा है सोही दिखाता हूं।
श्रीतीत्योगालिय (तीर्थोद्गार) पयन्नामें कहा है -यथा ;वीसदिणेहिं कप्पो, पंचगहाणीय कप्पठवणाय, नवसय तेणउएहिं, वुच्छिन्ना संघआणाए॥१॥
देखिये ऊपरकी गाथामें वीश दिनका कल्य, तथा पांच पांच दिनकी वृद्धि करके अज्ञातपर्युषणास्थापन करनेसे पिछाड़ी कालावग्रह संबंधी श्रीवृहत्करपत्ति, श्रीदशाश्रुतचूर्णि,
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