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[ २६५ ] और उत्सत्र भाषणके फलविपाक सम्बन्धी उपरमें ही पृष्ट २४० से २५६ तक लिखने में आया है उसीका भय लगता हो, तथा श्रीजिनेश्वर भगवान् के वचन पर आपलोगोंकी कुछ भी श्रद्धा हो, और अपनेही श्रीतपगच्छके नायक श्रीदेवेन्द्र सरिजी तथा श्रीरत्नशेखर मूरिजीके उत्सत्र भाषक सम्बन्धी उपरोक्त वाक्योंको आपलोग सत्यमानतेहो, और श्रीदेवेन्द्र सरीजी कृत श्रीधर्मरत्नप्रकरण वृत्ति आपलोगोंके समुदाय में विशेष करके व्याख्यानाधिकारे तथा पठन पाठनमें भी वारंवार आती है उन्हीके वाक्यार्थकी आपके हृदय में धारणा हो, तो ऊपरका लेखको परमहितशिक्षारूप समझके उत्सत्र भाषण करते हो जिसको छोड़ो, तथा उत्सूत्र भाषण करा होवे उसीका मिथ्या दुष्कृत देवो, और गच्छके पक्षपात को तथा पण्डिताभिमानको छोड़के श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा मुजब शास्त्रोंके महत् प्रमाणानुसार आषाढ़ चौमासी से ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनेका और अधिक मामको गिनतीमें प्रमाणादि अनेक सत्य बातोंकों ग्रहण करो, और भक्तजनोंकों करावो जिससे आपकी और आपके भक्त जनोंकी आत्मसिद्धिका रस्तापावो-श्रीजिनाज्ञारूपी सम्यक्त्वरत्नके सिवाय मोक्ष साधनमें गच्छका पक्षपात तथा पण्डिताभिमान कुछ भी काम नहीं आता है इसलिये गच्छ पक्षको छोड़के श्रीजिनामा मुजब सत्यबातको ग्रहण करना सोही आत्मार्थी विवेकी विद्वान् सज्जन पुरुषोंको परम उचित है।
और आगे फिर भी छठे महाशयजीने लिखा है कि ( थोड़े समयकी बात हैं बुद्धिसागर नामा खरतरगच्छीय
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