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[ २८३ ] परानुसार पञ्चाङ्गीके अनेक प्रमाणयुक्त श्रीखरतरगच्छके बुद्धि निधान प्रभाविकाचार्योंने अनेक शास्त्रोंकी रचना भव्य जीवोंके उपगारके लिये करी है जिसको न माननेवाले दम्भप्रियेजी जैसे प्रत्यक्ष श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातना करनेवाले पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रोंके उत्थापक अद्धारहित जैनाभास मिथ्यात्वी बनते हैं इस बातको विशेष सज्जन पुरुष अपनी बुद्धिसे स्वयं विचार लेवेंगे,
२ दूसरा यह है कि--श्रीखरतरगच्छ प्रसिद्ध करनेवाले श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजकृत श्रीअष्टकजी सूत्रकी वृत्ति तथा श्रीपञ्चलिङ्गी प्रकरण मूल और तत्ति श्रीखरतरगच्छ के श्रीजिनपति सूरीजी कृत और श्रीखरतरगच्छ नायक सुप्रसिद्ध बुद्विनिधान महान् प्रभाविक श्रीमदायदेवसूरिजी महाराजने श्रीनवाङ्गी वृत्ति उपरान्त श्रीउवाइजी श्रीपञ्चाशक जी श्रीषोडषकजी वगैरहकी अनेक वृत्ति और प्रकरणस्तोत्रादि बहुतही शास्त्रोंकी रचना करी है तथा और भी श्रीखरतरगच्छके अनेक आचार्योंने सैकड़ो शास्त्रोंकी रचना करी है जिन्हकोमानते हैं व्याख्यानमें वांचते हैं तथापि दम्भप्रियेजी (तुम्हारे गच्छके आचार्यका लेख प्रमाण न किया जावेंगा) ऐसा लिखते हैं सो कितनी मायावत्तिसे अन्याय कारक है इसको भी निष्पक्षपाती सज्जन स्वयं विचार सकते हैं ;___ और श्रीजिनेश्वर सूरिजीसें निश्चय करके श्रीखरतरगच्छ प्रसिद्ध हुवा है इसलिये श्रीनवाङ्गीवृत्तिकार श्रीमदभयदेव सूरिजी भी श्रीखरतरगच्छमें हुवे हैं तथापि श्रीजिनवल्लभ सूरजीसे अथवा श्रीजिमदत्त सूरिजीसें १२०४ में खरतर हुवा
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