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[ २१ बातका खुलासा पूछा तब उस पण्डितकी उसी बातका खुलासा करनेकी बुद्धि नही होनेसे अपने विद्वत्ताकी इज़्जत रखनेके लिये उस बातका सम्बन्धको छोड़के निष्प्रयोजन की वृथा अन्यान्य बातोंको लाकर अनुचित शब्दोंसे यावत् क्रोधका सरणा ले करके अपनी विद्वत्ताकी बातको जमाता है परन्तु विवेकी विद्वान् पुरुष उस पण्डितका मिथ्या पण्डिताभिमानको और अन्यायके पाखण्डको अच्छी तरह मैं समझ लेते हैं-तैसेही छठे महाशयजी आपनें भी करा अर्थात् आषाढ़ चौमासीसें ५० दिने दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करनेवालोंको आज्ञाभङ्गका दूषण लगाने सम्बन्धी प्रीबुद्धिसागरजीने आपको शास्त्रका प्रमाण पूछा उसीको शास्त्रका प्रमाण बतानेकी आपकी बुद्धि नही होनेसें और शास्त्रका प्रमाण भी आपको नही मिलनेसे ऊपर कहे सो नामधारी पण्डितवत् आपने भी अपनी विद्वत्ताकी इज्जत रखने के लिये शास्त्रका प्रमाण बतानेके सम्बन्धको छोड़ करके निष्प्रयो. जनकी वृथा अन्यान्य बातेंकों लिखकर अनुचित शब्दसे यावत् क्रोधका सरणा लेकर अपनी विद्वत्ताको जमानी चाही परन्तु निष्पक्षपाती विद्वान् पुरुषोंके आगे आपका मिथ्या पण्डितासिमानका और अन्यायके पाखरहका दर्शाव अच्छी तरहसें खुल गया हैं कि-इठे महाशयजीके पास शास्त्रका प्रमाण न होनेसें श्रीबुद्धिसागरजीको सूर्पनखाको ओपमा वगैरह प्रत्यक्ष मिथ्या वाक्य लिखके अपने नामकी हासी कराई है क्योंकि श्रीबुद्धिसागरजीने सूर्पमखाकी तरह दोनु पक्षको दुःखदाई होनेका कोई भी कार्य नही करा है तथा न ढूंढियांका सरणा लिया है
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