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[ २१४ ]
पुकारते हो परन्तु अपनी मति कल्पना अनेक जगह शास्त्रों के पाठोंका उलटा अर्थ करते हो और अनेक शास्त्र के पाठोंको तथा अर्थको भी छुपाते हो और शास्त्रों के प्रमाण बिना भी अनेक कल्पित बातों करके मिथ्यात्व में फसते हो और भोले जीवोंको फसाते हो ( इसका विशेष आगे करनेमें आवेगा ) इस लिये भी ढूंढियांका सरणा आपही लेते हो ।
४ चौथा - जैसे ढूंढिये लोगोंकी गांम गांमनें वारम्वार श्रीजिन प्रतिमाजीकी और श्रीजैनाचाय्योंकी निन्दा अवहेलना करनेकी आदत है जिसमें अपने संसार वृद्धिका भय नही रखते हैं तैसेही आप लोगोंकी भी गांम गांममें श्रीपर्युषण पर्वका व्याख्यान वगैरह में श्रीवीरप्रभुके छ ( ६ ) कल्याणककी और श्रीजिनेन्द्र भगवान् का तथा पूर्वाचायका प्रमाण करा हुवा अधिक मासको निन्दा अवहेलना करनेकी आदत है जिससे आप लोग भी उत्सूत्र भाषणका भय न करते हुए संसार बृद्धिसे कुछ भी डरते नही हो इस लिये भी ढूंढियांका सरणा आपही लेते हो ।
५ पाँचमा - जैसे ढूंढिये लोग चर्चा करो चर्चा करो ऐसा पुकारते हैं परन्तु चर्चाका समय आनेसें मुख छिपाते हैं और जो बातकी चर्चा करनेकी होवे जिसकी शास्त्रार्थ मैं न्यायपूर्वक चर्चा करनी छोड़कर अन्याय से निष्प्रयोजन की अन्य अन्य बातांका झगड़ा खड़ा करके यावत् क्रोधका सरणा लेकर - रांड़ नपुती जैसी वृथा लड़ाई करके निन्दा ईर्षा से संसार वृद्धिका कारण करते है परन्तु शास्त्रोक्त चर्चा वार्ता रोतिसें एक भी बात के सत्यअसत्यका निर्णय करके
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