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[ २७७ ]
बेर उसी गांमका प्रतिष्ठित आदमी मारफत अथवा अपना जानकार संवेगी तथा ढूंढिया तो क्या परन्तु ब्राह्मण, सेवग, वगैरह हरेक जातिका हरेक धर्मवाला पुरुषकी मारफत उसीका निर्णय करनेमें आता है तेनेही श्रीबुद्धिसागरजीनें भी किया अर्थात् दो पत्र आपको शास्त्रका प्रमाण पूछनेके लिये भेजे तथापि आपका कुछ भी जबाब नहीं आया तब तीसरी बेर प्रसिद्ध आदमी अपना जानकार के मारफत, आपको भेजे हुए पूर्वोक्त पत्रोंका जबाब पूछाया उसमें सरणा लेनेका कदापि नहीं हो सकता है परन्तु आप लोग अनेक बातों ढूंढियांका सरणा लेते हो सो ऊपर मेंही
लिख आया हूं सो विचार लेना;
और दोनु गच्छवालोंके आपसमें वादविवाद तथा कोर्ट कचेरी में झगडा टंटा रूप वृथा युद्ध करनेको तथा कराने को आपही तैयार हो सो तो आपके लेखसें प्रत्यक्ष दीखता है ।
महाशयजी अब--किसकी मनः कामना पूर्ण न होनेसें किसीने ढूंढियांका सरणा लेकर युद्धारम्भ करना चाहा है और सूर्पनखाकी तरह दोनं पक्षको दुःखदाई भी कौन हुवा है सो ऊपरका लेखको तथा आगेका लेखको और इन्ही ग्रन्थको पढ़कर हृदयमें विवेक बुद्धि लाकर विचार कर लीजिये, ---
और भी आगे छठे महाशयजी अपने और अपने गुरुजी न्यायाम्भोनिधिजीके उत्सूत्र भाषणके कृत्यों को तथा उन कृत्योंके फल विपत्कोंका न देखते हुए श्रीबुद्धिसागरजी ने शास्त्रोंके पाठोंका प्रमाण सहित पत्र लिखकर पालणपुर
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