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[ १० ] में १७, रनकोषमै १८, लग्नचन्द्रिका, १९, ज्योतिषसारमें २०, और ज्योतिर्विदाभरण वृत्तिमें २१, इत्यादि अनेक ज्योतिष शास्त्रों में कितनेही मास १, कितनीही संक्रान्ति २, कितनेही वार ३, कितनीही तिथियां ४, कितनेही योग ५, कितनेही नक्षत्र ६, और जन्मका नक्षत्र , जन्मका मास ८, अधिक मास ९, क्षयमास १०, अधिक तिथि ११ क्षय तिथि "१२, व्यतीपात १३, और कृष्ण पक्षकी तेरस चौदश अमावस्या इन क्षीण तिथियों में १४, पापग्रहयुक्त चन्द्रमें १५, पापग्रह युक्त लममें १६, गुरुका अस्तमें १७, शुक्रका अस्तमें १८, गुरु शुक्रकी वाल और वृद्धावस्थामें १९, ग्रहणके सात दिनोंमें २०, लग्नका स्वामी नीचामें २१, और अस्समें २२, सन्मुख योगिनीमें २३, चन्द्रदग्ध तिथिमें २४,सन्मुख राहुमें २५, सिंहस्थ में २६, मलमासमें २७, हरिशयनका चौमासामें २८, भद्रामें २९, और तिथि, वार, नक्षत्र, लग्न, दिशा वगैरह आपसमें अशुभ योगोंमें ३०, इत्यादि अनेक निमित्त कारणोंमें मुहूर्त निमित्तिक शुभकार्य वजन किये हैं इस लिये न्यायां भोनिधिजी तथा उन्होंके परिवारवाले जो ज्योतिषशास्त्रों के 'अशुभ योगोंसें शुभकायौँका वजन देखके धर्मकायोंका भी वर्जन करेंगे तब तो उन्होंको धर्मकार्य कब करनेका वख्त मिलेगा अथवा शुभयोग बिना धर्मकार्य न करते किसीका आयुष्यपूर्ण हो जावे तो उन्हकी आत्माका सुधारा कब होगा सो पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष विचार लेना-और मेरा इसपर आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको इतनाही कहना है कि न्यायांभोनिधिजी उपरोक्त ज्योतिष शास्त्रोंके शुभाशुभयोगों को न देखते सिंहस्यमें तथा हरिशयनका
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