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होते हैं जब अधिकमास जिस संवत्सर में होता है तब उस संवत्सर में तेरह मास होनेसे संवत्सरका नाम भी अभिवर्द्धित कहा जाता है—अधिक मासको गिनती में लिया जिससे संवत्सरका भी प्रमाण वढ़ गया और युगकी पूरतीका भी बरोबर हिसाब मिलगया – अधिक मास अनादिकाल हुए होता रहता है तथा मासवृद्धि हो अथवा न हो तो श्री श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने श्रीपर्युषण पर्वका आराधन वर्षा ऋतु में ही करना कहा है यह बात आत्मार्थी विवेकी विद्वानोंसे छुपी हुई नही है याने प्रसिद्ध है इसलिये श्री पर्युषण पर्व अधिक मास हो तो भी वर्षा ऋतुके सिवाय और ऋतुयोंमें कदापि नही हो सकते हैं और मुसलमान लोग तो सिर्फ एक चन्द्र दर्शनको अपेक्षासें २९ । ३० दिनका महिना मान्य करके बारह महिनोंके ३५४ दिनका एक वर्ष मानते है और अधिक मासका भिन्न व्यवहारको नही मानते हैं याने चन्द्रके हिसाब से बारह बारह महिनोंका एक एक वर्ष मानते चले जाते हैं परन्तु अपने माने मास तारीख नियत ताजियें भी करते रहते हैं और जैन तथा
दूसरे हिन्दू अधिक मासको मान्य करके तेरह मासोंका वर्ष मानते हैं तथा अपने माने मास, तिथि नियत पर्व भी करते है इसलिये जैन तथा दूसरे हिन्दूयांके तो ऋतु, मास, तिथि नियत पर्व अधिक मास होतो भी फिरते हुए नही चले जाते है परन्तु मुसलमान लोग अधिक मासको नही मानते हुए अनुक्रमे सीधा हिसाबसें ही वर्त्तते है इस लिये लौकिक में अधिक मास होनेसें मुसलमानोंके ताजिये अमुक ऋतुमें तथा अमुक लौकिक मासमें होते हैं यह
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