________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २३६ ] दो मासके कारणसे श्रीज्ञानीजी महाराजके कहने मुजब कल्याणक आराधन करनेमें आते थे और अधिक मासको गिनतीमें भी करने में आता था इसलिये अधिक मासकी गिनती करनेसें श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणक गिनतीमें नही बढ़ सकते है और इस पञ्चमें कालमें भरत क्षेत्र में श्रीज्ञानीजी महाराजका अभाव होनेसें और लौकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासोंकी वृद्धि होनेके कारणसें प्रथम मासका प्रथम कृष्ण पक्ष और दूसरे मासका दूसरा शुक्लपक्षमें मास तिथि नियत कल्याणकादि धर्मकार्य तथा लौकिक और लोकोत्तर पर्व करनेमें आते है जिसका युक्तिपूर्वक दृष्टान्त सहित सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजीके नामकी समीक्षा लिखने में आवेगा सो पढ़नेसे विशेष निर्णय हो जावेगा इस लिये न्यायरत्नजी कल्याणक बढ़ जानेके भयसे अधिक मासकी गिनती निषेध करते है सो जैन शास्त्रों के विरुद्ध उत्सूत्रभाषण करते है सो उपरके लेखसे पाठकवर्ग भी विशेष विचार सकते है। ___और इसके अगाड़ी फिर भी न्यायरत्नजीने लिखा है कि ( अधिक महिनोंके कारण से कभी दो भादवे हो तो दूसरे भाद्रवेमें पर्युषणा करना चाहिये जैसे दो आषाढ़ महिने होते है तब भी दूसरे आषाढ़में चातुर्मासिक कृत्य किये जाते है वैसे पर्युषणा भी दूसरे भाद्रवेमें करना न्याययुक्त है) ___उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुं कि हे सज्जन पुरुषों उपरके लेख में न्यायरत्नजीने मासवृद्धि के कारणसे दो आषाढ़ और दो भाद्रपद लिखे जिससे अधिक मास गिनतीमें सिद्ध होगया फिर अधिक मासको
For Private And Personal