________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २५८ ] स्कारादि तथा पर भवमें और भवो भवमें खूब गहरी वारं. वार नरकादिमें शिक्षा मिलती है इस बातका विचार सज्जन पुरुष जब करते हैं तब तो आपके गुरुजन न्यायांभोनिधिजी वगैरहको और आपके गच्छवासी हठग्राही जो जो पूर्व उत्सूत्र भाषक हुए है तथा वर्तमानमें आप जैसे है और भी आगे होवेंगे उन्होंको क्या क्या शिक्षा मिलेगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने क्योंकि आप लोग उत्सत्र भाषणकी अनेक बातें कर रहे हो जिसमेंसें थोडीसी बातें नमुना रूप इस जगह लिख दिखाता हूं ;
१ प्रथम-अधिकमासको गिमतीमें निषेध करते हो सो उत्सूत्रभाषण है।
२दूसरा-अधिकमास होनेसे तेरह मासोंके पुण्यपापादि कार्य करके भी तेरह मासोंके पापकृत्योंकी आलोचना नही करते हो और दूसरे तेरह मासोंके पापकृत्योंकी आलो. चना करते है जिन्होंकों दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है।
३ तीसरा-श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार अधिक मासको गिनतीमें प्रमाण करनेवालोंको मिथ्या दूषण लगाते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है।
४ चौथा-जैन ज्योतिषाधिकारे सर्वत्र शास्त्रों में अधिक मासको गिनतीमें अच्छी तरहसे खुलासैके साथ प्रमाण करा है तथापि आप लोग जैन शास्त्रों में अधिक मासको गिनती में प्रमाण नही करा है ऐसा प्रत्यक्ष महा मिथ्या बोलते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है।
५ पांचमा-पर्युषणाधिकारे सर्वत्र जैन शास्त्रों में आषाढ़
For Private And Personal